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________________ है 48 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् . द्वितीया दशा मूलार्थ-जानकर असत्य बोलने से शबल दोष होता है / टीका-इस सूत्र में प्राणातिपात की रीति से ही मृषा-वाद का वर्णन किया गया है / जैसे-जान कर असत्य भाषण करना, संदिग्ध विषय को असंदिग्ध बताना, किसी पदार्थ के स्वरूप को जानते हुए भी झूठ बोल कर लोगों से छिपाना तथा यश और कीर्ति के लिए झूठा आडम्बर रचना शबल-दोषाधायक होता है / यदि कोई व्यक्ति व्याख्यानादि की उपयुक्त शैली, सूत्र-व्याख्या और शिष्यादि के लोभ के वश में आकर असत्य का प्रयोग करे तो भी उसे शबल दोष लगता है / प्रश्न यह होता है कि असत्य-भाषण से द्वितीय महा-व्रत का भंग होता है, अतः इसको महा-व्रत-भंग दोष कहना चाहिए था-शबल दोष क्यों कहा? समाधान यह है कि महा-व्रत-भंग इससे भी उत्कृष्ट भाव-असत्य आदि कारणों से होता है / जैसे किसी पदार्थ का स्वरूप न जानकर उसके विपरीत मिथ्या कल्पना कर कहना / यहां यह कथन केवल द्रव्य-असत्य के विषय में प्रतीत होता है / परन्तु समाधि-इच्छुक को इससे भी बचने का प्रयत्न करना चाहिए / जैसे-राजा आदि की हिंसा महामोहनीय कर्म का कारण है किन्तु स्नानादि से हुई जीव-हिंसा हिंसा होते हुए भी उस में भावों की तीव्रता नहीं होती इसी प्रकार मृषा-वाद के विषय में भी जानना चाहिए / , मुषा-वाद के अनन्तर अब सूत्रकार अदत्तादान के विषय में कहते हैं :- .. आउट्टियाए अदिण्णादाणं गिण्हमाणे सबले / / 14 / / आकुट्या अदत्त-दानं गृहन् शबलः / / 14 / / पदार्थान्वयः-आदिण्णादाणं-अदत्त-दान आउट्टियाए-जानकर गिण्हमाणे-ग्रहण करते हुए सबले-शबल दोष लगता है / मूलार्थ-जानकर अदत्त-दान ग्रहण करने से शबल दोष होता है / टीका-इस सूत्र में बताया गया है कि जानकर, बिना आज्ञा के किसी वस्तु का उपभोग करने से शबल-दोष होता है / किन्तु इसका तात्पर्य चोरी आदि बड़े दुष्कर्मों से नहीं है, केवल साधारण वस्तु के बिना आज्ञा ग्रहण से ही है / उदाहरणार्थ कल्पना करो कि एक पदार्थ दश व्यक्तियों का साधारण है अर्थात दश व्यक्ति उसके पाने के अधिकारी
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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