________________ द्वितीया दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / अब सूत्रकार दशम शबल दोष का वर्णन करते हैं / अंतो मासस्स तओ माईठाणे करेमाणे सबले / / 10 / / अन्तर्मासस्य त्रीणि माया-स्थानानि कुर्वन् शबलः / / 10 / / पदार्थान्वयः-मासस्स-एक मास के अंतो-भीतर तओ-तीन माईठाणे-माया-स्थानों को करेमाणे-करते हुए सबले-शबल दोष लगता है / मूलार्थ-एक मास के अन्तर्गत तीन माया-स्थान करने से शबल दोष लगता है | टीका-यह अपवाद-सूत्र है / माया (छल कपट) का सेवन सर्वथा निषिद्ध है / / यहां सूत्रकार कहते हैं कि यदि कोई भिक्षुक भूल से माया-स्थानों का सेवन कर बैठे तो उसे ध्यान रखना चाहिए कि दो से अधिक माया-स्थानों का सेवन शबल-दोष करने वाला होता है / / इस कथन से सूत्रकार का यह आशय भी प्रतीत होता है कि मायावी की आत्मा क्रोध, मान, माया और लोभ चारों कषायों से युक्त तो होती है किन्तु वह सदा इसी चिन्तना में रहता है कि कैसे वह इन कषायों से मुक्त हो / एक बार इनसे मुक्त होकर यदि मोहोदय से वह फिर इनका सेवन कर बैठे तो उसके लिए नियम कर दिया है कि दो. से अधिक बार माया-स्थान-सेवन से भिक्षुक शबल दोष भागी होता है / सिद्धान्त यह निकला कि माया-स्थानों का सेवन कभी न करना चाहिए / यदि कोई माया-पूर्वक आलोचना भी करे तो उसे एक मास अधिक उसका प्रायश्चित्त करना पड़ेगा / यह अपवाद सूत्र है अतः इस में स्थूलतया (गौण रूप से) ही माया के विषय में कहा गया है / माया का सर्वथा परित्याग ही श्रेयस्कर है, क्योंकि ऋजु-(शुद्ध प्रकृति वाला) आत्मा ही आत्म-विशुद्धि प्राप्त कर सकता है न कि मायावी / “समवायाङ्ग सूत्र” में “करेमाणे" के स्थान पर “सेवमाणे पाठ है और किसी-२ लिखित पुस्तक में “ठाणे” के स्थान पर “ठाणाइं” पाठ भी मिलता है /