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________________ टीका सूत्रकार ने 'रिद्ध, स्थिमिय, समिद्ध' ये तीन पद दिये हैं, इनके द्वारा नगर का समस्त वर्णन कर दिया है। विशाल भवनों से नगर की शोभा बढ़ती है। किन्तु वही नगर वृद्धिशाली हो सकता है, जो निर्भय हो अर्थात् जहाँ राजा, तस्कर आदि किसी प्रकार का भय न हो। शास्त्रों में भय के अनेक प्रकार बताये हैं—राजभय, तस्करभय, जलभय, अग्निभय, वनचरभय तथा जनता के असन्तोष का भय / जब नगर निर्भय होता है, तभी उन्नति के शिखर पर पहुंचता है। परिणाम-स्वरूप धन-धान्य आदि की वृद्धि होती है और वह व्यापार का केन्द्र बन जाता है, कोल्लाक नामक सन्निवेश उक्त गुणों से युक्त था। सन्निवेश उसे कहते हैं—“सन्निविशन्ति जना यस्मिन स ग्रामविशेषः" अर्थात् जिसमें जन निवेश करते हैं, उसी का नाम सन्निवेश (पड़ाव) है। कोल्लाक सन्निवेश वाणिज्यग्राम के समीप एक पड़ाव या बस्ती थी, जो व्यक्त तथा सुधर्मा गणधरों का जन्म स्थान मानी जाती है। भगवान् महावीर को यहाँ रहने वाले बहुल ब्राह्मण के घर से प्रथम भिक्षा प्राप्त हुई थी। __ आनन्द के स्वजन सम्बन्धियों का वर्णनमूलम् तत्थ णं कोल्लाए सन्निवेसे आणंदस्स गाहावइस्स बहुए मित्तणाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणे परिवसइ, अड्ढे जाव अपरिभूए // 8 // छाया तत्र खलु कोल्लाक सन्निवेशे आनन्दस्य गाथापतेर्बहुको मित्र-ज्ञाति-निजक-स्वजनसम्बन्धि-परिजनः परिवसति, आयो यावदपरिभूतः। शब्दार्थ तत्थ णं-उस, कोल्लाए सन्निवेसे—कोल्लाक सन्निवेश में, आणंदस्स गाहावइस्सआनन्द गाथापति के, बहुए—बहुत से, मित्तणाइणियगसयण संबंधि परिजणे-मित्र, ज्ञाति, आत्मीय, स्वजन-सम्बन्धी और परिजन रहा करते थे। अड्ढे जाव अपरिभूए–वे भी आढ्य यावत् अपरिभूत थे। भावार्थ उस कोल्लाक सन्निवेश में आनन्द गाथापति के बहुत से मित्र, जातिबन्धु, आत्मीय, स्वजन, सम्बन्धी तथा परिजन निवास करते थे। वे भी सम्पन्न तथा अपरिभूत थे। टीका—इस सूत्र में आनन्द गाथापति के स्वजनों का वर्णन किया गया है। मित्रादि के लक्षण निम्नलिखित दो गाथाओं में वर्णित हैं “मित्तं सयेगरूवं, हियमुवदिसइ, पियं च वितणोइ। तुल्लायार वियारी, सज्जाइ वग्गो य सम्मया णाई // " 1 मित्रं सदैकरूपं हितमुपदिशति प्रियं च वितनोति / तुल्याचारविचारी, स्वजाति वर्गश्च सम्मता ज्ञाति : // श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 82 | आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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