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________________ संघ ने आपकों पहले युवाचार्य और क्रम से आचार्य स्वीकार किया। आप बाहर में ग्रामानुग्राम विचरण करते रहे और अपने भीतर सत्य के शिखर / सोपानों पर सतत आरोहण करते रहे। ध्यान के माध्यम से आप गहरे और गहरे पैठे। इस अन्तर्यात्रा में आपको सत्य और समाधि के अद्भुत अनुभव प्राप्त हुए। आपने यह सिद्ध किया कि पंचमकाल में भी सत्य को जाना और जीया जा सकता है। __वर्तमान में आप ध्यान रूपी उस अमृत-विधा के देश-व्यापी प्रचार और प्रसार में प्राणपण से जुटे हुए हैं जिससे स्वयं आपने सत्य से साक्षात्कार को जीया है। आपके इस अभियान से हजारों लोग लाभान्वित बन चुके हैं। पूरे देश से आपके ध्यान-शिविरों की मांग आ रही है। ____ जैन जगत आप जैसे ज्ञानी, ध्यानी और तपस्वी संघशास्ता को पाकर धन्य-धन्य अनुभव करता जन्म स्थान जन्म आचार्य प्रवर श्री शिवमुनिजी महाराज : शब्द चित्र मलौटमंडी, जिला (फरीदकोट (पंजाब) - 18 सितम्बर 1642 (भादवा सुदी सप्तमी). श्रीमती विद्यादेवी जैन स्व. श्री चिरंजीलाल जी जैन * वैश्य ओसवाल माता पिता वर्ण वंश / / / / भाबू दीक्षा: दीक्षा स्थान दीक्षा गुरु / / / 17 मई, 1672 समय : 12.00 बजे मलौटमण्डी (पंजाब) बहुश्रुत, जैनागम रत्नाकर राष्ट्र संत श्रमणसंघीय सलाहकार श्री ज्ञानमुनिजी महाराज श्री शिरीष मुनि जी, श्री शुभम मुनि जी, श्री श्रीयश मुनि जी श्री सुव्रत मुनि जी, श्री शमित मुनि जी, श्री निपुण मुनि जी, श्री निरंजन मुनि जी, श्री निशांत मुनि जी, श्री निरज मुनि जी 13 मई, 1987 पूना-महाराष्ट्र शिष्य / / युवाचार्य पद श्रमणसंघीय आचार्य पदारोहण .. - चादर महोत्सव अध्ययन 6 जून, 1666 अहमदनगर, (महाराष्ट्र) . 7 मई, 2002 ऋषभ विहार, नई दिल्ली डबल एम.ए., पी-एच.डी., डी.लिट्, आगमों का गहन गंभीर अध्ययन, ध्यान-योग-साधना में विशेष शोध कार्य श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 367 / परिशिष्ट
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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