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________________ संवर्द्धित द्वितीयावृत्ति इस परम पुनीत पूजनीय ग्रंथ की प्रथमावृत्ति विक्रम संवत् 1944 में श्री संघ की तरफ से छपवाकर प्रसिद्ध की गयी थी। वह तत्काल समाप्त हो गयी। उसके बाद इसकी बहुत माँग होने लगी, पर कई अनिवार्य कारणों के कारण दूसरी आवृत्ति निकालने में बहुत विलम्ब हो गया और दूसरी तरफ इसकी उपयोगिता देख कर इस ग्रंथ को प्राप्त करने के लिए वाचकों का लक्ष्य बढ़ता ही गया। दूसरी आवृत्ति छपाने के लिए बार बार प्रेरणापत्र प्राप्त होने से आहोर (मारवाड़) निवासी श्रीमान् सद्गृहस्थ शाह रतनाजी भूताजी ने यह ग्रंथ दूसरी बार छपवाने का विचार किया। तदनुसार इस कार्य को हाथ में ले कर यह ग्रंथ छपवा कर प्रसिद्ध किया गया है। इस ग्रंथ में प्रथमावृत्ति की अपेक्षा अनेक स्थान पर सुधार कर के वृद्धि की गयी है। प्रत्येक विषय के आरम्भ में शीर्षक भी जोड़े गये हैं। इससे चलते विषय का ज्ञान वाचकों को सहज हो सकेगा। कई बालजीव चित्र देख देख कर फाड़ देते हैं और आशातना करते हैं। इसी कारण से इस द्वितीय संस्करण में अधिक चित्र नहीं जोड़े गये हैं। . वाचकों की तरफ से बार-बार यह शिकायत हुआ करती थी, कि इस ग्रंथ का विस्तार बहुत अधिक होने से यह पाँच दिन में पूरा करने में बहुत कठिनाई होती है। इस शिकायत को ध्यान में ले कर इस संस्करण में हमने नियम से पढ़ने योग्य मेटर वन्निक ब्लेक टाइप (बड़े अक्षरों) में रखा है और समय कम हो, तो पढ़ते समय छोड़ देने लायक मेटर ग्रेट ब्लेक टाइप (छोटे अक्षरों) में रखा है। इससे वाचकों को सूचित करते हैं कि पढ़ते समय यदि समय अधिक हो, तो बड़े-छोटे दोनों टाइप का मेटर पढ़ना और समय कम हो, तो छोटे टाईप वाला मेटर छोड़ कर बड़े टाइप का मेटर ही पढ़ कर पूर्ण करना। छोटे टाइप वाला मेटर छोड़ कर पढ़ने में किसी प्रकार का दोष (हरकत) नहीं है। . ॐ शान्तिः ! ॐ शान्तिः !! ॐ शान्तिः !!! - व्याख्यानवाचस्पति उपाध्याय मुनि यतीन्द्रविजय
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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