________________ (19) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध इस प्रकार यह कल्पसूत्र भी तीसरे वैद्य के समान गुणकारी है। इसके श्रवण से पूर्व में बाँधे हुए कर्मरूप व्याधि दूर हो जाती है और नये कर्मों का बंध नहीं होता। यह सब आपदाएँ दूर करता है, सुख-संपत्ति बढ़ाता है, चारित्रगुण को पुष्ट करता है और मोक्ष का सुख भी तुरन्त प्रदान करता है। इस कल्पसूत्र में प्रथम श्री वीरचरित्र है। वह बीज के समान है। श्री पार्श्वनाथ चरित्र अंकुर है, श्री नेमीश्वर भगवान का चरित्र थड है, श्री आदिनाथ चरित्र शाखा है, स्थविरावली फल है, कथा सुगंध है और फल मोक्ष है। जो इस सूत्र के सब अक्षर सुनता है; वह आठ भव में मोक्ष प्राप्त करता है। कारणवश से चातुर्मास में विहार और चातुर्मास योग्य क्षेत्रगुण ___अब साधु जिस गाँव में वर्षावास करे, उस गाँव में इस कल्पसूत्र की वाचना करे। चातुर्मास पूर्ण होने के बाद याने कि कार्तिक सुदि पूनम हो जाने के बाद भी यदि वर्षा होने के कारण मार्ग में कीचड़प्रमुख हुआ हो, तो वहाँ साधु अधिक दिन भी रह सकते हैं। तथा जिस गाँव में साधु वर्षावास कर रहे हों और चातुर्मास समाप्त होने के पहले यदि उस गाँव में- 1. महामारी आदि रोगों का उपद्रव हो, 2. भिक्षा बड़ी मुश्किल से मिलती हो, ३.राजा कोपायमान हुआ हो, 4. कुंथुआ आदि अनेक सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति हुई हो, 4. सर्प-अग्नि आदि का भय उत्पन्न हुआ हो, 6. रोग और वर्षा रुकते न हों, 7. अकाल पड़ जाये; इत्यादि कारण उत्पन्न हों तो चातुर्मास में भी विहार करने की आज्ञा भगवान ने दी है। इसलिए विहार करने में दोष नहीं है। अब संयम निर्वाह के लिए साधु को जहाँ वर्षावास करना पड़े; वहाँ प्रथम उस क्षेत्र में उत्कृष्टता से तेरह गुण देखने चाहिये। वे इस प्रकार हैं१. जिस गाँव में कीचड़ अधिक न हो, 2. जिस गाँव में बेइन्द्रियादिक जीव अधिक न हों, 3. स्थंडिल जाने की भूमि निरवद्य हो, 4. स्त्री, पशु, पंडकादिक दोषरहित उपाश्रय निवास के लिए हो, 5. दही-दूध बहुतायत से उपलब्ध हो, 6. भद्रप्रकृति श्रद्धालु श्रावकों के घर हों, 7. निपुण वैद्य रहते