________________ (444) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध ने सीढ़ी दूर की। फिर साधु के पात्र अच्छी तरह सेवई और घी - शक्कर से भर दिये। ऊपर खड़े-खड़े सेठानी हाँका करने लगी कि इसे क्यों वहोराते हो? यह तो मुंडा है। पर उसका कुछ जोर चला नहीं। साधु ने भी पात्र भर कर निकलते वक्त नाक पर ऊँगली फेर कर स्त्री को जताया कि तेरी नाक कट गयी। फिर उपाश्रय में आ कर सब साधुओं को भोजन कराया। इस तरह इस साधु ने जैसे अभिमान कर के आहार लिया, वैसे अन्य साधुओं को आहार नहीं लेना चाहिये। मायापिंड पर आषाढ़भूति का दृष्टान्त गुरुप्रेरणा से आषाढ़भूति मुनि एक बार राजगृह नगर में किसी नट के घर गोचरी के लिए गये और विद्याबल से रूप परिवर्तन कर के पाँच बार मोदक वहोरे। यह देख कर उस नट ने मुनि को अपनी रूपवती दो कन्याओं के मोहजाल में फंसाया। आषाढ़भूति मुनि उपकरण गुरु को सौंप कर, जो मद्यमांस का सेवन न करे उसके साथ ही रहना, ऐसी प्रतिज्ञा ले कर पुनः नट के घर आये। नट ने उन्हें अपनी दो कन्याएँ ब्याह कर अपना घरजमाई बनाया। मुनि नटकन्याओं के साथ विविध विषयसुख भोगने लगे। उसी समय नगर में किसी विदेशी नट ने आ कर यह उद्घोषणा करवायी कि जो कोई नटविद्या में पारगामी हो, वह मेरे साथ वाद करने के लिए तैयार हो। उस उद्घोषणा को रोक कर नट ने अपने दामाद आषाढ़भूति को विदेशी नट के साथ विवाद करने के लिए राजसभा में भेजा। उनके जाने के बाद आषाढ़भूति की स्त्रियों ने मद्य-मांसभक्षण करना शुरु किया। अपने विद्याबल से उस विदेशी नट को क्षणभर में परास्त कर आषाढ़भूति पुनः अपने घर लौटे और किंवाड़ खटखटाये। तब स्त्रियाँ यह सोच कर घर के बाड़े में जा कर वमन करने लगी कि दुर्गंध के कारण मद्य-मांस का भक्षण किया वे जानेंगे, तो छोड़ कर चले जायेंगे। आषाढ़भूति दीवार पर चढ़ कर बाड़े में उतरे और वमन में मांस देख कर विरक्त हो गये। फिर ससुर के कहने से स्त्रियों के खाने के खर्च का बन्दोबस्त करने के लिए राजा के पास जा कर उन्होंने भरत चक्रवर्ती का नाटक शुरु किया। उसमें भरत चक्रवर्ती की तरह सोलह श्रृंगार से सुसज्जित हो कर आरीसाभवन में जा कर एकत्व भावना का चिन्तन शुरु किया। इससे थोड़ी ही देर में शुभध्यान के प्रभाव से आषाढ़भूति को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। देवों ने साधुवेश दे कर सुवर्णकमल की रचना की। उस पर बैठ कर आषाढ़भूति ने धर्मदेशना दी। उसे सुन कर राजा-रानी