________________ (438) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध एक खेड़ा गाँव का निवासी कोई ब्राह्मण था। वह खेती करता था। खेती का व्यवसाय करते हुए एक दिन हल चलाते समय उसका एक बैल अडियल (गलीया) हो कर बैठ गया। उसे उठाने के बहुत प्रयत्न किये, लातें मारी, तो भी वह नहीं चला। ब्राह्मण क्रोध से तमतमा कर उसे मिट्टी के ढेले मारने लगा। ढेलों से पूरा बैल ढंक गया। अन्त में बैल का दम घुट जाने से वह मर गया। इस पाप का ब्राह्मण ने महापुरुषों के पास प्रायश्चित्त माँगा। महापुरुषों ने पूछा कि तेरा क्रोध उतरा या नहीं? उत्तर में ब्राह्मण ने कहा कि अभी उसे देखू तो मार डालूँ। महापुरुषों ने विचार किया कि ऐसे पापी को क्या दंड दिया जाये? इसकी शुद्धि तो किसी तरह हो ही नहीं सकती। यह कह कर उसे जाति से बाहर कर दिया। इस तरह जो क्रोध का त्याग नहीं करता, उसे संघ से बाहर कर देना चाहिये। . . कृत अपराध की क्षमा माँगने पर मृगावती का दृष्टान्त अपने से अपराध हुआ हो, तो मृगावती की तरह खमाना चाहिये। अपना मन शुद्ध कर के मिच्छा मि दुक्कडं देना चाहिये। जैसा कि एक दिन श्री महावीरस्वामी का कौशांबी नगरी में समवसरण हुआ। वहाँ चन्द्र और सूर्य ये दोनों अपने मूल विमानों में बैठ कर वन्दन करने आये। चन्दनबाला, मृगावतीप्रमुख वहाँ बैठी थीं। उनमें से चन्दनबाला तो सूर्यास्त होते जान कर उठ कर अपने उपाश्रय में आ गयी, पर मृगावती भगवान की देशना में मोहित (मग्न) हो कर वहीं बैठी रहीं। जब सूर्य और चन्द्र अपने स्थान पर चले गये, तब अंधेरा हो गया। मृगावती चन्दना को न देखने से भयभीत हो कर अकेली ही उपाश्रय में आयी। फिर इरियावही पडिक्कमण कर के पाँव दबाते हुए चन्दनबाला से बोली कि हे स्वामिनी! मैं रात में अकेली आयी, इसलिए अपराधिनी हूँ। इस अपराध के लिए आप मुझे माफ कीजिये। चन्दना ने कहा कि हे भद्रे! तुम उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो, इसलिए तुम्हें ऐसा करना उचित नहीं है। मृगावती ने कहा कि आगे से मैं ऐसी भूल नहीं करूंगी। इस तरह बार-बार चन्दनबाला के पाँव पड़ते हुए, शुद्ध मन से खमाते हुए मृगावती को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। फिर चन्दना को तो पाँव दबाने से नींद आ गयी। उस समय अंधकार में साँप आया जान कर मृगावती ने चन्दना का हाथ उठा कर संथारे पर रख दिया। तब चन्दना जागृत हो कर कहने लगी कि मेरा हाथ किसने उठाया? मृगावती ने कहा कि साँप का संघट्ट होते देख कर मैंने आपका हाथ ऊँचा रखा। चन्दना ने कहा कि