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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (431) मुनि से पूछा कि हे साधु! नगर में फौज कितनी है? साधु ने कहा कि बहुत सुना कानों ने, बहुत देखा आँखों ने। नहीं देखा सब सुना, नहीं सुना सब देखा। जब जब उनसे पूछा जाता, तब तब वे ऐसा ही बोलते। सेना के लोगों ने जाना कि यह पढ़ पढ़ कर पागल हो गया है। ऐसा विचार कर उन्हें छोड़ दिया। ___ (3) एषणासमिति पर नंदीषेण का दृष्टान्त- वसुदेवजी का जीव पूर्वभव में नन्दीषेण था। उन्होंने ग्लान मुनि की वैयावच्च करने का अभिग्रह लिया था। वे स्वयं छट्ठ के पारणे छट्ठ करते थे। उनकी इन्द्र ने प्रशंसा की। तब किसी देव ने आ कर अतिसार के रोग वाला साधु बना कर उसे नन्दीषेण के पास भेजा। नन्दीषेण उसके लिए पानी लाने गये। देव ने जल अशुद्ध कर दिया। नन्दीषेण ने वह जल नहीं लिया। उन्होंने ग्लान को कंधे पर बिठाया। ग्लान ने उन पर अशुचि की, तो भी उन्होंने घृणा नहीं की। तब देव ने उनकी बहुत स्तुति की। यह कथा श्री नेमिप्रभु के चरित्र में लिखी गयी है। (4) आदान-भंड-मत्त-निक्खेवण समिति पर सोमिल साधु का दृष्टान्त- एक दिन कुछ साधु विहार कर के किसी गाँव में आये। दिन कितना शेष है? इस बात की बराबर खबर न पड़ने के कारण उन्होंने जल्दी पडिलेहण कर ली। बाद में समय की खबर पड़ी। तब गुरु ने कहा कि पडिलेहणा करने का समय तो अब हुआ है, इसलिए पुनः पडिलेहणा करो। यह सुन कर सब साधुओं ने पुनः पडिलेहणा की, पर सोमिल मुनि ने कहा कि पडिलेहणा तो पहले ही कर ली है। इतने में क्या साँप घुस गया है? फिर सुबह के समय पडिलेहणा की, उस समय पात्र बँधे हुए थे, फिर भी देवप्रयोग से सर्प निकला। उससे डर कर गुरु के पास आ कर उसने कहा कि महाराज! साँप निकला है। गुरु ने कहा कि तू उलंठ वचन क्यों बोला? ऐसा वचन आज के बाद मत बोलना। पडिलेहणा करने में तो बहुत निर्जरा है। फिर उस साधु ने अभिग्रह लिया कि आज से सब साधुओं के दंडों की मैं पडिलेहणा करूँगा और पडिलेहण करने में सब मुनियों की मदद करूँगा। अभिग्रह पालते हुए सोमिल मुनि ने बहुत कर्मों का क्षय किया। (5) उच्चार-प्रस्रवण समिति पर सुव्रताचार्य के शिष्य का दृष्टान्त- सुव्रताचार्य के एक लघु शिष्य था। गुरु ने उससे कहा कि मांडले कर, तो भी उसने मांडले नहीं किये और वह कहने लगा कि बाहर क्या ऊँट बैठे हैं? फिर रात में वह मात्रा (पेशाब) परठने के लिए बाहर गया। वहाँ किसी देव ने उसे ऊँट का रूप बना कर डराया। उसने कहा कि अरे! इस गच्छ में एक भी साधु मंडल किये बिना मात्राप्रमुख
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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