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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (415) ने कहा कि अरे, लक्ष्मी तो मर्जी में आये, उस तरफ से आती है। जिस तरफ से आये, उस तरफ से शुभ जानना। इस विषय में कुछ विचार नहीं करना। सेठ ने खुश हो कर वृद्ध साधु को बत्तीस लड्डु वहोराये। उन्हें ले कर उपाश्रय में आ कर गुरु को दिखाया। उसे देख कर गुरु ने विचार किया कि मुझे बत्तीस शिष्य होंगे। वृद्ध ने कहा कि यह पहला लाभ हुआ है। इसे सब साधुओं को दे देना चाहिये। यह सोच कर सब मोदक साधुओं को दे दिये। फिर पुनः गोचरी जा कर खीर का भोजन ला कर स्वयं ने पारणा किया। इस तरह ये वृद्ध साधु भिक्षा में लब्धिवान हुए। वे जहाँ जाते वहाँ दाता यदि महालोभी होता, तो भी उत्तम भोजन उन्हें वहोराता। इस तरह वे वृद्ध साधु गच्छ के आधारभूत हुए। श्री आरक्षितजी के गच्छ में तीन साधु लब्धिवान हुए- एक दुर्बलिका पुष्यमित्र, दूसरे घृतपुष्पमित्र और तीसरे वस्त्रपुष्पमित्र तथा चार साधु महापंडित हुएएक दुर्बलिका पुष्पमित्र, दूसरे वृद्ध सोमदेव, तीसरे फल्गुरक्षित और चौथे गोष्ठमाहिल। . एक दिन इन्द्र महाराज ने सीमंधरस्वामी से निगोदविचार के विषय में पूछा। तब भगवान ने निगोद का वर्णन कर के सुनाया। फिर इन्द्र ने पूछा कि भरतक्षेत्र में भी ऐसा स्वरूप कहने वाला कोई वर्तमान में विद्यमान है क्या? भगवान ने कहा कि आर्यरक्षितसूरि हैं। फिर इन्द्र ने वृद्ध का रूप बना कर आर्यरक्षितजी के पास आ कर पूछा कि महाराज! मेरी आयु अभी कितनी है? गुरु ने श्रुत का उपयोग कर के कहा कि तुम पहले देवलोक के इन्द्र हो। फिर इन्द्र ने निगोद के सूक्ष्म विचार पूछे। उन सबका गुरु ने खुलासा किया। फिर इन्द्र महाराज गुरु की स्तवना कर के उपाश्रय का द्वार फिरा कर चले गये। इससे शिष्यों को मालूम हुआ कि इन्द्र महाराज आये थे। ___ आर्यरक्षितसूरिजी ने बुद्धि की हानि होते देख कर सूत्रों के अलग अलग चार अनुयोग किये। वृद्धवादी, सिद्धसेन-दिवाकर व कालिकाचार्य ___ एक साधु वृद्धावस्था में उच्च स्वर से पढ़ रहा था। उसे देख कर एक राजा ने कहा कि इतने जोर से रट कर क्या तू मूसल को फुल्लवित करेगा? यह सुन कर उस वृद्ध साधु ने सरस्वती को प्रत्यक्ष कर और उससे विद्यावर प्राप्त कर चौक में मूसल खड़ा कर के राजा आदि सब लोगों की उपस्थिति में फुल्लवित काव्य से उस मूसल को फुलाया। यह देख कर राजा प्रमुख सब लोग चमत्कृत हुए। इससे उसका नाम वृद्धवादी पड़ा। वृद्धवादीसूरि ने सिद्धसेन ब्राह्मण को प्रतिबोध दिया। उन
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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