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________________ (400) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध करूँगा। यह कह कर आकाश में उड़ कर माहेश्वरीपुरी में हुताशन नामक देव के वन में वे अपने पिता के मित्र वनमाली के पास गये। वहाँ जा कर उससे कहा कि फूल तैयार रखना। इतना कह कर वे हिमवन्त पर्वत पर गये। वहाँ पद्मद्रह की कमलनिवासिनी लक्ष्मीदेवी ने श्री वज्रस्वामी को वन्दन किया और कहा कि हे स्वामिन्! आपकी इस दासी को कुछ आदेश दीजिये। तब आचार्य ने कहा कि पूजा के लिए फूल चाहिये। लक्ष्मीदेवी स्वयं पूजा के लिए जो लक्षदल कमल ले कर आयी थी, उसे हाजिर किया। उसे ले कर लौटते वक्त हुताशन वन में से बीस लाख फूल ले कर विमान में बैठ कर पूर्वभव का मित्र तिर्यग्नुंभक / जाति का देव भी आचार्य के साथ गीत-नृत्य-वाजित्रप्रमुख महोत्सव करते हुए आया। वज्रस्वामी ने सब पुष्प श्रावकों को दिये और जिनचैत्य की महिमा बढ़ायी। श्रीसंघ भी बहुत हर्षित हुआ। उस नगर का राजा भी बौद्ध धर्म का त्याग कर जिनधर्मी हुआ। फिर एक दिन दक्षिण मार्ग में जाते हुए श्री वज्रस्वामी को श्लेष्म हुआ। उन्होंने साधुओं के पास गोचरी में झूठ मँगायी। उसे कान पर रख कर सोचा कि बाद में खा लूँगा, पर भूल से वह वैसे ही रह गयी। प्रतिक्रमण करते समय वह नीचे गिरी। तब वज्रस्वामी ने सोचा कि मैं दस पूर्वधर हूँ, फिर भी मुझसे ऐसी भूल हुई है। इससे लगता है कि मेरी आयु अब स्वल्प रह गयी है, इसलिए अनशन करना ठीक है। फिर उन्होंने अपने शिष्य वज्रसेन से कहा कि बारह वर्ष का अकाल पड़े, तब तुम सोपारापुर-पट्टन जाना। कोई तुमसे पूछे कि सुकाल कब होगा? तब तुम उत्तर देना कि जिस दिन लाख मूल्य की हंडी चूल्हे पर चढ़ेगी, उसके दूसरे दिन से सुकाल होगा। मैं तो अब अनशन करूँगा। यह कह कर उन्होंने वज्रसेन को सोपारापट्टन जाने के लिए बिदा किया। ___अपने पास रहे हुए साधुओं को जब भिक्षा नहीं मिली, तब उन्होंने विद्यापिंड बना कर कइयों को भोजन कराया। फिर पाँच सौ साधुओं को साथ ले कर अनशन करने के लिए चले। उनमें एक छोटा था। उसे भरमाते
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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