________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (393) अन्य किसी को मत पढ़ाना। तब से पश्चात् के चार पूर्वो के ज्ञान का - विच्छेद हुआ और दस पूर्व का ज्ञान शेष रहा। ___ ये श्री स्थूलिभद्रजी आचार्य गृहस्थावस्था में तीस वर्ष, व्रत पर्याय में चौबीस वर्ष और युगप्रधान पद में पैंतालीस वर्ष एवं सर्वायु निन्यानबे वर्ष की भोग कर श्री महावीरस्वामी के निर्वाण के बाद दो सौ पन्द्रहवें वर्ष में देवलोक गये।७. इनमें एक श्री जंबूस्वामी केवली हुए और शेष सब श्रुतकेवली हुए। आर्य महागिरि, आर्य सुहस्ति और राजा संप्रति का वृत्तान्त ___ श्री स्थूलिभद्रजी के पाट पर एक श्री आर्य महागिरि एलापत्य गोत्रीय और दूसरे श्री आर्य सहस्ति वासिष्ठ गोत्रीय ये दो शिष्य आचार्य हुए। इनके समय में जिनकल्पमार्ग का विच्छेद हुआ था, तो भी श्री आर्य महागिरिजी ने जिनकल्प की तुलना की। याने ये जिनकल्प की मर्यादा के अनुसार चलने लगे। एक दिन श्री आर्य सुहस्तिसूरि किसी सेठ के घर उपदेश दे रहे थे, उस : अवसर पर श्री आर्य महागिरिजी गोचरी आये। उन्हें देख कर श्री आर्य सुहस्ति तुरन्त उठ कर खड़े हो गये। तब सेठ ने पूछा कि ये महात्मा कौन हैं? आर्य सुहस्तिसूरि ने सेठ के आगे आर्य महागिरिजी की स्तवना कर के सब वृत्तान्त कह सुनाया। तथा इनके समय में अकाल पड़ा। खाने के लिए अनाज मिलना मुश्किल हो गया। इससे सब लोग दुःखी हुए। राजा जैसे लोग भी रंक जैसे हो गये, तो भी श्रावक लोग साधुओं को बहुत भिक्षा देते थे। साधुओं को अधिक भिक्षा मिलते देख कर एक भिखारी साधुओं के पीछे चलने लगा। उसने कहा कि मुझे खाने के लिए कुछ दो, तुम्हें बहुत खाना मिलता है। साधुओं ने कहा कि हमारे गुरु से पूछ कर तू उनकी आज्ञा ले आ। तब भिखारी गुरु के पास आया। गुरु ने कहा कि जो हमारे जैसा होता है, उसे हम देते हैं। तब भिखारी ने कहा कि ठीक है, आपके जैसा मुझे भी बना लो।