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________________ . श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (387) तरह रहा नहीं जायेगा। इसलिए आपको वहाँ नहीं जाना चाहिये। तब . स्थूलिभद्र ने कहा कि एक तो मेरे पिता की मृत्यु हो गई है और दूसरे राजा का हुक्म आया है। राजा का हुक्म टल नहीं सकता, तो भी एक बार तुमसे मिलने के लिए मैं अवश्य आऊँगा। यह कह कर स्थूलिभद्र अपने घर आये। भट्ट के प्रपंच की व पिता की मृत्यु की सब बातें सुन कर वे राजा के पास गये। राजा ने उनसे प्रधानपद ग्रहण करने के लिए कहा। तब स्थूलिभद्र ने कहा कि विचार कर के ग्रहण करूँगा। राजा ने कहा कि शीघ्र विचार कर लो। फिर राजा की अशोकबाड़ी में जा कर उन्होंने विचार किया कि यह संसार तो मतलबी है। कोई किसी का सगा नहीं है। जैसी हालत मेरे पिता की हुई, वैसी ही मेरी भी एक दिन होना संभव है। इसलिए राज्य के काम में इस लोक का भी सुख नहीं है और परलोक में तो नरक की प्राप्ति होती है। इस तरह संसार को असार जान कर, वैराग्य रंग से रंगित हो कर उन्होंने रत्नकंबल का ओघा बनाया और लोच कर के साधु बन कर राजा के पास जा कर उसे धर्मलाभ दिया। राजा ने जाना कि यह व्यसनी है, इसलिए वेश्या के घर जायेगा। यह सोच कर वह देखने लगा। तब वे तो किसी महा दुर्गंधित गली में से हो कर गाँव के बाहर निकल गये, पर दुर्गन्ध से बचने के लिए नाक तक नहीं ढंका। इससे राजा ने जान लिया कि यह सचमुच वैराग्यवान है। फिर स्थूलिभद्रजी ने श्री संभृतिविजयजी के पास जा कर दीक्षा ली। राजा ने श्रीयक को मंत्रीपद की मुहर सौंप दी। ___फिर चातुर्मास आने पर श्री स्थूलिभद्रजी गुरु के आदेश से कोशा वेश्या के घर चातुर्मास के लिए रहे। दूसरा साधु सिंह की गुफा में, तीसरा साधु साँप के बिल पर और चौथा साधु कुएँ के बीच के काष्ठ पर चातुर्मास के लिए रहा। इन चारों में से स्थूलिभद्रजी चातुर्मास में वेश्या के घर रहे थे। वहाँ चातुर्मास करना बड़ा कठिन था। एक तो वर्षाऋतु थी, जो काम जगाने वाली है, क्योंकि जिस काल में मेघ गर्जारव करते हैं, बिजली कौंधती है, मोर केकारव करते हैं, पपीहे पिउ पिउ करते हैं, उस काल में भोग की
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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