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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (375) भी ऐसा विचार आयेगा कि मुझे तो सुबह दीक्षा लेनी है, आज यदि चोर लोग द्रव्य ले जायेंगे, तो लोग कहेंगे कि देखो! इसका सब धन चोर ले गये, इसलिए यह सिर मुंडा रहा है। इस तरह धर्म की निन्दा होगी। यह बात ठीक नहीं है। यह सोच कर वह नवकार गिनने लगेगा। इससे पाँच सौ चोरों के पाँव स्तंभित हो जायेंगे। तब प्रभव सोचने लगेगा कि यह क्या हो गया? फिर देखेगा तो उसे जंबूकुमार जागता हुआ नजर आयेगा। तब वह जान लेगा कि इसके पास कोई महाप्रभावक विद्या है। यह जान कर वह जंबूकुमार से कहेगा कि मेरी विद्या आप लीजिये और आपकी विद्या मुझे दीजिये। तब जंबूकुमार कहेगा कि मेरे पास कोई विद्या नहीं है और किसी अन्य विद्या की मुझे आवश्यकता भी नहीं है। मुझे तो मात्र नवकार मंत्र का आधार है। ऐसा धर्मोपदेश देगा। . तब प्रभव पूछेगा कि इन नयी ब्याही हुई स्त्रियों का त्याग कर आप दीक्षा क्यों ले रहे हैं? संसार के सुख भोग कर फिर दीक्षा लेना। तब जंबूकुमार कहेंगे कि हे प्रभव! संसार में सुख है ही कहाँ, कि जिसे मैं भोगें? संसार का सुख तो मधुबिन्दु के समान है। उसके लालच में जीव संसार में भटकता है। जैसे कोई एक पुरुष भूल से वीरान (उजाड़) में जा पहुँचा। उसके पीछे एक हाथी भागा। हाथी के भय से भागते भागते वह एक बड़ की शाखा से लटक गया। उस शाखा के नीचे एक कुआँ है। उसमें चार सर्प मुँह फाड़ कर बैठे हुए हैं तथा दो अजगर भी मुँह फाड़ कर बैठे हैं। बड़ के तने को हाथी हिला रहा है। जिस शाखा से वह पुरुष लटक रहा है, उस शाखा को एक काला और दूसरा उजला ऐसे दो चूहे कुतर रहे हैं। उस पर एक मधुमक्खी का छत्ता है। उसमें से मक्खियाँ उड़ उड़ कर उस पुरुष को काट रही हैं। ___ इतने में उस छत्ते में से मधु की एक बूंद नीचे गिरी। वह सीधे उस पुरुष की जीभ से जा लगी। तब वह ऊपर देखने लगा। उसने देखा कि छत्ते में से मधुबिन्दु गिर रहा है। यह जान कर उसने उस बिन्दु के नीचे मुँह खुला
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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