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________________ (366) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध श्री ऋषभदेव अरिहन्त के दो प्रकार से अन्तकृत् भूमि हुई। उसमें असंख्यात पाट तक मोक्ष मार्ग चलता रहा, उसे युगान्तकृत् भूमि कहते हैं तथा भगवान को केवलज्ञान उत्पन्न होने के पश्चात् अन्तर्मुहूर्त बाद मरुदेवी माता मोक्ष गयी। इसे पर्यायान्तकृत् भूमि कहते हैं। ____ उस काल में उस समय में श्री ऋषभदेव अरिहन्त बीस लाख पूर्व तक कुमारावस्था में रहे और तिरसठ लाख पूर्व तक राज्यावस्था में रहे। इस तरह तिरासी लाख पूर्व तक वे गृहवास में रहे, एक हजार वर्ष छद्मस्थ अवस्था में रहे तथा एक हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व तक केवलपर्याय में रहे। इस तरह सम्पूर्ण एक लाख पूर्व तक साधुपना पाल कर भवोपग्राही चार कर्मों का क्षय कर के, इस अवसर्पिणी का सुखमदुखमा नामक तीसरा आरा बहुत बीत गया, शेष तीन वर्ष साढ़े आठ महीने रहे तब, शीतकाल का तीसरा महीना पाँचवाँ पखवाड़ा माघ वदि तेरस के दिन अष्टापद पर्वत पर दस हजार साधुओं के साथ चौदह भत्त याने छह उपवास पानीरहित करते हुए अभीजित् नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर, प्रथम प्रहर के बाद दोपहर के समय पालथी मार कर बैठने के आसन में रहते हुए भगवान कालगत हुए। यावत् सब दुःखों से रहित हुए। शक्रादि इन्द्रकृत अग्निसंस्कारोत्सव उस अवसर पर शक्रेन्द्र का आसन चलायमान हुआ। तब वह अश्रुपूरित आँखों से अष्टापद पर आया। वहाँ आ कर भगवान को तीन प्रदक्षिणा दे कर वह नमस्कार कर के योग्य स्थान पर बैठ गया। अन्य भी इन्द्र वहाँ आ कर बैठे। फिर शक्रेन्द्र ने देवों को भेज कर नन्दनवन से चन्दन मँगवाया। फिर तीन चिताएँ बनवायीं। एक भगवान के शरीर के लिए, दूसरी गणधरों के शरीर के लिए और तीसरी सब साधुओं के शरीर के लिए। आभियोगिक देवों के द्वारा क्षीरसमुद्र का जल मँगवा कर शक्रेन्द्र ने भगवान के शरीर को स्नान कराया और सब वस्त्राभूषणप्रमुख पहनाये। 1. सत्तर लाख करोड़ वर्ष और छप्पन्न हजार करोड़ वर्ष का एक पूर्व होता है।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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