SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ / श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (359) मेरे स्वामी हो, इसलिए तुम पहले मुझ पर शस्त्र चलाओ। यह सुन कर सिंहरथ ने सुषेण पर शस्त्र से वार किया, तब सुषेण सेनापति ने खड्ग चलाया। मार्ग में सिंहरथ के भाई सिंहकेतु ने वह खड्ग गिरा दिया। इससे सुषेण को बहुत क्रोध आया। वह बाहुबली की सेना का मथन कर बाहुबली के पास जा पहुँचा। इतने में अनिलवेग विद्याधर वहाँ आ गया। वह बाहुबली को नमस्कार कर सुषेण के साथ लड़ने लगा। वे दोनों जन मल्ल की तरह परस्पर मुक्कों से और लट्ठों से युद्ध करने लगे। उस समय सुषेण खड्ग ले कर सिंहरथ को मारने के लिए आगे बढ़ा। इतने में सूर्यास्त हो गया। उनके संग्राम में यह मर्यादा थी कि यदि कोई ऋषभदेवजी की शपथ दे तो नहीं लड़ना, सूर्यास्त होने के बाद नहीं लड़ना और मेघ बरसता हो, तब नहीं लड़ना। संध्या होने के पूर्व जो मर गये, उनका तो कोई इलाज नहीं, पर जो अर्द्धमृत हुए हों, उन्हें भरतजी अपने काकिणीरत्न के जल से और बाहुबली सोमयश के हृदयाभरणों के जल से ठीक कर देते थे। ऐसी उनकी मर्यादा थी। ___पुनः दूसरे दिन प्रभातकाल में युद्ध शुरु हुआ। सुषेण सेनापति अनिलवेग को देख कर आग के समान जलने लगा। वह अनिलवेग को मारने के लिए आगे बढ़ा। इतने में सिंहरथ बीच में आ गया और सुषेण के साथ लड़ने लगा। तब अनिलवेग ने भरतराजा की सारी सेना को पार कर जहाँ भरतजी हाथियों के तीन गढ़ बना कर लेटे हुए थे, वहाँ जा कर हाथियों को कंकड़ की तरह उछाल दिया। फिर महाविकराल रूप धारण कर सेना का मथन करते हुए भरत के पास जा पहुंचा। तब भरत ने यह जान लिया कि यह विद्याधर दुर्द्धर है। यह मेरा ध्यान चुका देगा। यह न हो तो ही अच्छा है। यह सोच कर उन्होंने उस पर चक्ररत्न छोड़ा। चक्र देख कर अनिलवेग वहाँ से भागा। वह जहाँ जाता, वहीं चक्र उसके पीछे जाता। तब अनिलवेग वज्रपंजर बना कर छह महीने तक लवणसमुद्र में बैठ गया, पर चक्र उसके सिर पर घूमता ही रहा। छह
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy