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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (357) सुना भी नहीं है। यह सुन कर दूत को आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगा कि * यह बाहुबली का राज्य और उसकी प्रजा भी बड़ी जबरदस्त है। ऐसी बातें सुनते हुए और सोचते हुए वह तक्षशिला नगरी के निकट पहुँचा। वहाँ दरवाजे पर द्वारपाल ने रोका। बाहुबली की आज्ञा आने पर नगर में प्रवेश कर वह राज्यसभा में गया। बाहुबली ने आसन पर बिठा कर उससे पूछा कि हे दूत! क्या भरत अपने सवा करोड़ पुत्रादिकों सहित सकुशल है? इस पर दूत ने कहा कि हे राजन्! लाखों देव जिसकी सेवा में तत्पर हैं, उसे कुशल क्यों न हो? उसे तो कुशल ही है। पर आप उसकी सेवा में उपस्थित नहीं हुए, इसलिए वे यह सब निष्फल मानते हैं। अतः आप भरत महाराज के पास पधारिये और इतने दिन तक न आने के अपराध की क्षमायाचना कीजिये। वे भी आपके बड़े भाई हैं और आपके पिता के स्थान पर हैं। वे आपका सब अपराध माफ कर देंगे। अनेक राजा उनकी सेवा कर रहे हैं। वे अपके लिए तो अवश्य पूज्य ही हैं। ... दूत के ये वचन सुन कर बाहुबली उन वचनों का परमार्थ जान गये। उन्होंने भौहें तान कर आँखें तरेर कर के कहा कि अरे दूत! तू मारने योग्य नहीं है, इसलिए मैं तुझे नहीं मारता। पर छोटे अठानबे भाइयों के राज्य तो उसने ले लिये और अब मेरा भी राज्य लेना चाहता है। इससे भाई का स्नेह तो मैं जान गया। अब तू उससे कहना कि बचपन में जब अपन दोनों खेलते थे, तब मैं तुझे उछाल कर गेंद की तरह मेरे हाथ में ले लेता था। वे दिन क्या तू भूल गया है। मैं तो वह का वही हूँ। मेरे द्वारा सेवा कराने की इच्छा रखना मौत को आमंत्रण देने जैसा समझना। इस पर दूत ने कहा कि हे राजन्! यदि दो दिन सुखपूर्वक जीने की आपकी इच्छा हो और अपने परिवार के साथ आपका प्रयोजन हो, तो आप उनकी सेवा कीजिये। यह मैं आपसे सच सच कहता हूँ। यह सुनते ही क्रोधित हो कर बाहुबली ने धक्के मार कर दूत को बाहर निकाल दिया। दूत भी पिछले दरवाजे से निकल कर अपनी जान बचा कर भाग गया। फिर अयोध्या पहुँच कर भरतराजा के आगे उसने बढ़ा-चढ़ा कर सब बातें
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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