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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (349) पूर्व के किसी भव में एक सेठ के रूप में थे। वे एक दिन किसान के पास वसूली करने गये थे। एक किसान ने खला किया था। वहाँ अनाज निकालने के लिए किसान अपने बैलों को धान्य में घुमा रहे थे। वे बैल घूमते घूमते जब नीचे झुक कर अनाज में मुँह डालते, तब किसान उन बैलों के मुँह पर चाबुक मारते थे। यह देख कर सेठ को दया आ गयी। उसने उन किसानों से कहा कि अरे! तुम इन्हें व्यर्थ क्यों मारते हो? इनके मुँह पर छीका बाँध दो, तो ये धान्य नहीं खायेंगे और तुम्हें इन्हें मारने का परिश्रम भी नहीं करना पड़ेगा। फिर उन किसानों ने बैलों के मुँह पर छीके बाँधे। वे छीके बारह प्रहर तक बँधे रहे। यह अन्तरायकर्म भगवान ने बाँधा था, सो इस जन्म में उदय में आया। इसलिए किसी को भी अन्तराय नहीं करना चाहिये। धर्मचक्रपीठ की स्थापना और बाँग देने की प्रवृत्ति . एक बार भगवान विहार करते करते बहुलीदेश में तक्षशिला नगरी के उद्यान में संध्या समय काउस्सग्ग में रहे। वहाँ के वनपालक ने जा कर बाहुबली राजा को बधाई दी, तब राजा ने वनपालक को दान दे कर सन्तुष्ट किया। फिर उसने सोचा कि शाम हो जाने के कारण अब अंधेरा हो गया है, इससे थोड़े समय में सब परिवार इकट्ठा नहीं हो सकेगा, क्योंकि तीन लाख तो मेरे पुत्र ही हैं और पौत्रादिक भी अनेक हैं। वे सब इकट्ठे नहीं हो सकेंगे। इसलिए प्रातःकाल के समय महामहोत्सवपूर्वक प्रभु को वन्दन करने जाऊँगा। यह सोच कर वे बैठे रहे। __. 1. कोई कोई आचार्य कहते हैं कि भगवान ने महाविदेहक्षेत्र में जिन छह मित्रों के साथ चारित्र लिया था, उन छहों में श्री ऋषभ का जीव बड़ा था। वे सपरिवार विहार करते हुए किसी कुनबी के खेत की बाड़ में पहुँचे। उस समय वह कुनबी धान्य निकालने के लिए बैलों को फिरा रहा था। =वरी चलाते-चलाते बीच-बीच में वे बैल नीचा मुँह कर धान्य खाते, तब वह कुनबी उन्हें पैने से मारता। यह देख कर गुरु सोचने लगे कि यह कुनबी बिचारे बैलों को पैने से मारता है, इसके बदले यदि ये बैलों के मुख पर छीका बाँध दे, तो ये कुछ भी धान्य खा नहीं सकेंगे और चलते ही रहेंगे। ऐसा वे मुख से नहीं बोले, पर मन में ही सोचा। उस कर्म के प्रभाव से प्रभु को एक वर्ष तक आहार-पानी नहीं मिला।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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