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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (347) अन्य किसी का काम नहीं है। बड़ों का अपना काम दूसरों के लिए ही होता है, जैसे माता का पीया हुआ दूध बालक के लिए ही होता है। इस कारण से इस समय हमें विरोध करना योग्य नहीं है।" इस तरह बायें हाथ ने दाहिने हाथ को समझाया। तब श्रेयांसकुमार ने दोनों हाथों को समझाते हुए कहा कि "अरे! तुम दोनों जन अपने अपने काम में कल्याणकारी हो, पर अभी तुम मेरी प्रार्थना सफल करो। तुम दोनों इकट्ठे हो जाओ, जिससे भगवान के वार्षिक तप का पारणा हो और मेरे लिए भी उत्तम दान देने से संसारसमुद्र से तैरना हो जाये। इसलिए मुझ पर कृपा कर के आप दोनों आपसी झगड़ा मिटा कर भले हो कर आपस में मिल जाओ। श्रेयांस की यह विनती सुन कर दोनों हाथ अंजुली के आकार में मिल गये। तब श्रेयांसकुमार ने शुद्ध भाव से गन्ने का रस वहोराया। उसकी शिखा ऊपर चढ़ती गयी, पर एक बूंद भी नीचे नहीं गिरी। यह भगवान की लब्धि का प्रभाव जानना। यदि हजारों घड़े हाथ में औंधे कर दिये जायें अथवा सब समुद्रों का पानी हाथ पर उँडेल दिया जाये, तो भी एक बूंद तक हाथ से नीचे गिरे नहीं, मात्र शिखा ऊपर चढ़ती जाये। ऐसी लब्धि जब प्राप्त होती है, तब मुनि करपात्री होता है। फिर स्वामी ने वहीं पारणा किया। उस समय पाँच दिव्य प्रकट हुए। प्रथम गंधोदक-पुष्प की वृष्टि हुई, दूसरा वसुधारा की वृष्टि हुई, तीसरा वस्त्र की वृष्टि हुई, चौथा आकाश में देवदुंदुभी बजी और पाँचवाँ 'अहो दानम्! अहो दानम्' ऐसी उद्घोषणा देवों ने की। इस पात्रदान से श्रेयांसकुमार ने मोक्षफल उपार्जन किया। उसने भगवान के पारणा करने के स्थान पर रत्नमय पीठ बनवाया। . भगवान के पारणे का दिन वैशाख सुदि तीज का था। इससे अक्षयतृतीया नामक पर्व जगत में मान्य हुआ। लोगों ने प्रशंसा करते हुए कहा कि श्री ऋषभदेव जैसा पात्र, गन्ने के रस जैसा शुद्ध आहार तथा श्रेयांसकुमार जैसा भाव ये किसी महापुण्य योग से ही प्राप्त होते हैं। श्री आदिनाथ का पारणा गन्ने के रस से हुआ और अन्य तीर्थंकरों का प्रथम पारणा खीर के भोजन
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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