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________________ (4) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध उफनती है और भूसी की राबडी बनाते हैं, तो वह भी उफनती है। इसमें भी कोई आश्चर्य नहीं है। इसी प्रकार जिस एक ही स्थानक में एक ही क्षेत्र में अनेक गणधर, संपूर्ण श्रुतधर, महाशास्त्र के वेत्ता, नव रसावतार, महाव्याख्यान करने वाले व्याख्या करें और मैं भी व्याख्या करूँ, उसमें परस्पर इतना अन्तर जानना। याने कि भरत भेद जानने वाली नर्तकी तथा समुद्र और शुद्ध खीर के समान उन गणधरादिक को जानना और ग्रामीण स्त्री तथा गाँव का तालाब तथा भूसी की राबडी के समान मुझे जानना। ऐसा मैं श्री सद्गुरु और श्रीसंघ के प्रसाद से माननीय हुआ हूँ। जैसे कोई पाषाण जड़ तथा ज्ञानविवर्जित होते हुए भी जब उससे प्रतिमाजी बनायी जाती हैं, तब वह सब लोगों में माननीय, पूजनीय बन जाता है। उसी प्रकार श्रीगुरु तथा श्रीसंघ के प्रसाद से मैं भी माननीय हुआ हूँ।.. श्री देवगुरुनमस्कार- लक्षण-मंगलाचरण नत्वा श्रीमन्महावीरं, गौतमादि गणाधिपान्। . कुर्वेऽहं कल्पसूत्रस्य, व्याख्यां बालोपकारिणीम्।।१॥ प्रथम श्री गुरु महाराज से आदेश प्राप्त कर जिस क्षेत्र में साधुचातुर्मास करे; वहाँ चातुर्मास में भाद्रपद मास में पर्युषण पर्व आने पर मांगलिक निमित्त पाँच दिन तक श्री कल्पसूत्र का वाचन करे। कल्प नाम आचार का है। वह साधु का आचार दस प्रकार का है। जैसा कि कहा गया दशविध कल्प का स्वरूप अचेलुकुद्देसिय, सज्जायर-रायपिंड-किइकम्मे। वय-जिट्ठ पडिक्कमणे, मासं पज्जोसणा कप्पे।।१।। पहला अचेलक, दूसरा उद्देशिक, तीसरा शय्यातर, चौथा राजपिंड, पाँचवाँ कृतिकर्म, छठा व्रत, सातवाँ ज्येष्ठ, आठवाँ प्रतिक्रमण, नौवाँ मासकल्प और दसवाँ पर्युषण कल्प। ये दस प्रकार के कल्प याने कि आचार के नाम जानना।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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