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________________ (324) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध दिखाया। उसे देख कर व्यामोहित हो कर अनामिका ने नियाणा किया कि मेरी तपस्या का कोई फल हो, तो मैं इसकी स्त्री होऊँ। फिर अनामिका मृत्यु के बाद स्वयंप्रभादेवी हुई। ललितांग उसके साथ देवसुख भोगने लगा। वहाँ से च्यव कर ललितांग छठे भव में जंबूद्वीप के पूर्व महाविदेह की पुष्कलावती विजय के लोहार्गल नगर में सुवर्णजंघ राजा की लक्ष्मीवती रानी का वज्रजंघ नामक पुत्र हुआ। स्वयंप्रभादेवी भी उसी विजय की पुंडरीकिणी नगरी में वज्रसेन नामक चक्रवर्ती की श्रीमती नामक पुत्री हुई। अनुक्रम से वह युवान हुई। ____ एक दिन जब वह चन्द्रोदयसभा में बैठी थी, उस समय किसी साधु को केवलज्ञान उत्पन्न होने से देव उन्हें वन्दन करने जा रहे थे। उन देवों को देख कर उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। उसने सोचा कि मेरे पूर्व भव के पति ललितांग देव का जीव कहाँ उत्पन्न हुआ होगा? वह मिले और उसके साथ मेरा विवाह हो, तो अच्छा हो। यह सोच कर उसने मौन धारण कर लिया। माता-पिता ने अनेक उपचार किये, पर वह नहीं बोली। फिर धायमाता ने एकान्त में उससे बात पूछी, तब उसने एक कागज पर अपने हाथ से ललितांगदेव का चित्र बना कर दिया। धाय ने वह चित्र राजा को दिया। फिर वज्रसेन चक्रवर्ती के वर्षमहोत्सव पर अनेक राजपुत्र जब वहाँ आये, तब धाय वह चित्र ले कर राजमार्ग में बैठ गयी। वहाँ से जाने वाले राजकुमार उस चित्र को देखते जाते। वज्रजंघ ने जब वह चित्र देखा, तब उसे जातिस्मरणज्ञान हो गया। वह कहने लगा कि यह चित्र मेरी पूर्वभव की स्त्री स्वयंप्रभादेवी ने बनाया है। फिर धाय ने यह बात श्रीमती को बतायी। धाय की बात सुन कर श्रीमती ने वज्रजंघ के साथ विवाह किया। 1. कई प्रतों में ऐसा लिखा है कि उस पुत्री को तीर्थंकर की सभा में देवों को देख कर जातिस्मरणज्ञान हुआ। इससे उसने अपना पूर्वभव जाना। वहाँ अनामिका और स्वयंप्रभा का भव देख कर उसने सोचा कि मेरा पूर्वभव का पति ललितांग कैसे मिले? फिर पिता ने पूछा, तब उसने अपने पूर्वभव से संबंधित बात कही। चक्रवर्ती ने केवली से पूछा कि इसका पूर्वभव का पति कहाँ उत्पन्न हुआ है? केवली ने वज्रजंघ का नाम बताया। फिर चक्रवर्ती ने उसका वज्रजंघ के साथ विवाह किया।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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