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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध मिश्री, आदि की प्रभावना कर के बाजे-गाजे के साथ बड़े महोत्सव पूर्वक उपाश्रय में जा कर वह पुस्तक गुरु के हाथों में दें। गुरु वाचना करे। उसे सर्व श्रीसंघ सुने और गुरु के आगे श्रीफल आदि रखे। ___ अथवा यह पुस्तक जिस श्रावकादि के पास हो उसके पास से माँग कर प्राप्त कर के पंचों द्वारा निश्चित किये हुए अन्य किसी श्रावक के घर ले जा कर वहाँ रात्रि जागरण कर के दूसरे दिन सर्व संघ मिल कर पूर्वोक्त रीति से बड़े महोत्सव के साथ पौषधशाला में किंवा उपाश्रय में अथवा किसी श्रावक के घर में जहाँ सामायिकादि करने के लिए स्वच्छ निर्मल स्थान हो, उस स्थान पर अथवा जीवादि उपद्रव रहित अन्य कोई स्थान हो अथवा सर्व संघ ने मिल कर जहाँ पढ़ने का विचार किया हो, उस स्थान पर पहुंच कर ज्ञानभक्ति पूर्वक बहुत यत्न से सब प्रकार की आशातना टाल कर, पोथी किसी विवेकी सुज्ञ श्रावक के हाथ में दे कर वाचन करवाना चाहिये और अन्य सब लोगों को प्रमाद-निद्रा-विकथादि का त्याग कर विनयपूर्वक वहाँ बैठ कर एकाग्र चित्त से सुनना चाहिये। . श्री पर्युषण पर्व, कल्पसूत्र और श्रमणसंघ का महत्त्व कहते हैं नैतत्पर्वसमं पर्व, न च कल्पसमं श्रुतम्। न धार्मिकसमः संघ-स्त्रिरत्नानि जगत्त्रये।।१।। , इस संसार में दीपमालिकादि अनेक प्रकार के लौकिक पर्व हैं तथा चौमासी, श्री तीर्थंकर के पाँच कल्याणक, अष्टमी; पाक्षिक और तीर्थयात्रादिक अनेक पुण्य पर्व हैं। ये सब लोकोत्तर उत्तम पर्व हैं। इन सब पर्वो में शिरोमणि चिन्तामणि रत्न सदृश ज्येष्ठ सांवत्सरिक पर्व है। जैसे सांवत्सरिक पर्व समान अन्य कोई पर्व नहीं है; वैसे ही कल्पसूत्र समान कोई सूत्र भी नहीं है तथा चतुर्विध श्रीसंघ में श्री साधु-मुनिराज के संघ-समुदाय समान अन्य कोई संघ भी नहीं है। याने कि सब पर्वो में सर्वोत्तम पर्युषण पर्व है। इस पर्व के दौरान जो कल्पसूत्र पढ़ा जाता है, वह भी एकादशांगादिक सब सूत्रों में उत्तम है। इसी प्रकार कल्पसूत्र बाँचने वाले साधु-मुनिराज भी चारों
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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