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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (303) आयुधशाला में जा पहुँचे और वहाँ आयुध देखने लगे। तब रक्षपाल ने कहा कि आप छोटे बालक हैं, इसलिए दूर रहिये। इन्हें स्पर्श करना भी बड़ा कठिन है। ये बच्चों के खेल नहीं है। बड़े काम तो बड़ों से ही होते हैं। उस समय रक्षपाल की बात अनसुनी कर श्री अरिष्टनेमि कुमार ने श्रीकृष्ण के चक्र को उठा कर कुम्हार के चक्र की तरह घुमाया, सारंगधनुष्य को हाथ में ले कर कमलनाल की तरह झकाया, कौमोदकी गदा को काष्ठ की तरह उठा कर अपने कंधे पर रखा और जब उन्होंने पांचजन्य शंख बजाया, तब उसकी ध्वनि से तीनों लोक काँपने लगे, पर्वतशिखर टूट टूट कर गिरने लगे, समुद्र का जल उछलने लगा, हाथी-घोड़े आदि के बन्धन टूट गये। इससे सब लोग भाग गये। सब लोग बहरे हो गये। धरती काँपने लगी। नगर का किला टूट गया। दिग्गज परेशान हो गये। सब यादव मूर्छागत जैसे हो गये। सब लोग डरने लगे। श्रीकृष्ण तथा बलभद्र काँपने लगे और भयाकुल हो कर सोचने लगे कि यह ऐसा कौन बलवान है, जिसने सारी धरती को क्षुभित कर दिया है? ___इस तरह उन्हें जरा भी शान्ति नहीं मिली, इसलिए वे तुरन्त आयुधशाला में गये। वहाँ जा कर पूछा, तब लोगों ने कहा कि यह बल श्री अरिष्टनेमिकुमार का है। यह सुन कर पुनः चमत्कृत हो कर श्रीकृष्ण ने कहा कि हे भाई! चलो, हम अपने बल की परीक्षा करें, जिससे मन की मुराद पूरी हो। तब नेमिकुमार ने कहा कि भूमिलुंठनादिक बाह्य खेल करना उत्तम लोगों के योग्य नहीं है, इसलिए आपस में एक-दूसरे की भुजा झुका कर हम बल परीक्षा करें। तब श्रीकृष्ण ने उनकी बात मान कर अपनी भुजा लम्बी कर के कहा कि यह मेरी भुजा झुका कर बताओ। तब नेमिकुमार ने कमलनाल की तरह एक अंगुली से श्रीकृष्ण की भुजा झुका दी। - फिर श्री नेमिकुमार ने अपनी भुजा लम्बी की। तब कृष्ण ने बहुत जोर लगाया, पर वह नहीं झुकी। फिर वे वानर की तरह झूलने लगे। तब श्री नेमिकुमार हँसते हुए कहने लगे कि हे कृष्ण ! तुम्हें पालने में सुलाकर माता देवकी ने झुलाया नहीं है, इसलिए अब मैं झुलाता हूँ। यह कह कर उन्होंने
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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