SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (276) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध चित्र देख कर भगवान को वैराग्य हुआ। भगवान श्री पार्श्वनाथ अरिहन्त, दक्ष,चतुर, प्रतिज्ञापालक, रूपवान, गुणवान, भद्रक और विनयवान थे। वे तीस वर्ष तक गृहस्थावस्था में रहे। फिर लोकान्तिक देवों ने आ कर उन्हें इष्टकारी वाणी से कहा कि हे समृद्धिमान ! आपकी जय हो। यावत् हे कल्याणवान ! आपकी विजय हो। यह कह कर उनका जय-जयकार किया। श्री पार्श्वनाथजी मनुष्य योग्य गृहस्थ धर्म में भी अवधिज्ञान सहित थे। इसलिए उन्होंने यह जान लिया कि अब दीक्षाग्रहण का अवसर आ गया है। यह जान कर संवत्सरी दानप्रमुख श्री महावीरस्वामी की तरह दे कर शीतकाल का दूसरा महीना तीसरा पखवाड़ा पौष वदि एकादशी के दिन दोपहर के पूर्व वे विशाला नामक पालकी में बिराजमान हुए। देवों और मनुष्यों ने पालकी उठायी। यह सब दीक्षा महोत्सव श्री महावीरस्वामी की तरह जान लेना। पर इतना विशेष है कि वाराणसी नगरी में हो कर आश्रमपद उद्यान में अशोकवृक्ष के पास आ कर पालकी से उतर कर, अशोकवृक्ष के नीचे अपने हाथ से अलंकारप्रमुख सब उतार कर, अपने हाथ से पंचमुष्टि लोच कर के और अट्ठम तप पानीरहित कर के विशाखानक्षत्र में चन्द्रयोग होने पर, एक देवदूष्य वस्त्र ग्रहण कर तीन सौ पुरुषों के साथ दीक्षा ली और वे अनगार हुए। श्री पार्श्वनाथ अरिहन्त ने तिरासी दिन तक नित्य काया को वोसिरा कर देव, मनुष्य और तिर्यंच के जो-जो उपसर्ग हुए, वे सब सहन किये। प्रभु ने अट्ठम तप का पारणा कोपट सन्निवेश में धन्ना नामक गृहस्थ के घर परमान्न से किया। वहाँ पाँच दिव्य प्रकट हुए और साढ़े बारह करोड़ सुवर्णमुद्राओं की वर्षा हुई। कलिकुंड और कुकड़ेश्वर तीर्थ की स्थापना ___ एक बार भगवान विचरते हुए कादंबरी अटवी में आये। वहाँ कलिंगिरि पर्वत की तलहटी में कुंड सरोवर के पास काउस्सग्ग में रहे। वहाँ महीधर नामक हाथी पानी पीने पहुँचा। भगवान को देख कर उसे जातिस्मरणज्ञान
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy