________________ . (21) अधिक प्रतियाँ लिखवा लीं और उन्हें पढ़ कर सब संघ सन्तुष्ट हुए। परन्तु प्रतियाँ लिखवाने में खर्च अधिक होने से छोटे-छोटे गाँवों के जैन लोग वैसी प्रतियाँ लिखवाने में असमर्थ हुए। तब श्री संघ ने विचार किया कि यदि इस बालावबोध को पुस्तकाकार में छपवा दिया जाये, तो इससे वे जैन भी लाभ लेने में समर्थ हो सकेंगे। यह सोच कर मारवाड़ वगैरह देशों के श्री संघों ने खर्चे का प्रबंध कर के निर्णयसागर प्रेस मुम्बई में इस कल्पसूत्र बालावबोध की दो हजार प्रतियाँ छपवा कर प्रसिद्ध की और पुनः छपवाने से संबंधित सब प्रकार का हक सरकारी कानून के अनुसार संवत् 1944, सन् 1888, शालिवाहन शक 1809 मिति फाल्गुन सुदि 8 सोमवार के दिन रजिस्टर करवा के स्वाधीन रखने में आया। छप कर प्रसिद्ध होते ही इस ग्रंथ की दो हजार प्रतियाँ हाथों-हाथ समाप्त हो गयीं। यही इसकी उत्तमता और उपयोगिता का प्रत्यक्ष प्रमाण जानना। इस प्रस्तावना में इसमें आये हुए विषयों का स्पष्टीकरण न कर के इसके आरम्भ में दिये गये विषय-प्रदर्शन और कल्पसूत्र पीठिका पढ़ने की वाचकों को भलामण हैं। इस बालावबोध में अनेक विषयों पर कथाएँ दी गयी हैं। उन्हें भिन्न-भिन्न प्रतियों में से लिया गया है। उनमें यदि कोई फेरफार देखने में आये, तो इससे संदिग्ध नहीं होना, क्योंकि ग्रंथकर्ताओं ने अपनी-अपनी कृतियों में किसी जगह संक्षेप में तो किसी जगह विस्तार से कथाएँ लिखी हैं। यह परिपाटी परम्परागत है। इसलिए वाचनान्तर में किसी प्रकार का फेरफार दिखाई दे, तो उसमें सन्देह रखना नहीं, क्योंकि शास्त्र-वचन में सन्देह रखने से सम्यक्त्व का नाश होता है। सूत्रवचन भी है कि- संकाए सम्मत्तनासं। . पर्युषण पर्व सब पर्यों में श्रेष्ठ, मंगलकारक और परम पवित्र है। इसमें आरम्भ -समारंभ के व्यापार छोड़ कर और प्रमाद-कथाओं को देशनिकाला दे कर धर्माराधन तथा कल्पसूत्र-श्रवण या वाचन में तल्लीन रहना चाहिये। ऐसा करने से ही इस पर्व की आराधना का वास्तविक फल हासिल होता है। भला, जिन पर्व दिनों में परस्पर मैत्रीभाव रखना, प्रतिक्षण ध्यान में प्रवृत्ति करना, हर काम करते समय जयणा रखना और शान्त मन से महान् आत्माओं के चरित्र सुनना चाहिये; वहाँ वैसा न कर के यदि परस्पर बैर-विरोध बढ़ाया जाये, प्रतिक्षण व्यर्थ वाग्युद्ध किया जाये, हर कार्य में जयणा को देश निकाला दिया जाये और कलहकारी बातें सुनाई दें, तब पर्वाराधन का फल कैसे प्राप्त हो सकता है? ऐसा करने से फल की आशा तो दूर रही; पर दुगुने कर्म बँधते हैं। कहा गया है कि पर्व के दिनों में कलह-कंकास से जो कर्म बँधता है, वह