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________________ (252) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध 4. श्री अव्यक्त गणधर चौथे अव्यक्त भी भगवान के पास आये।स्वामी ने कहा कि तुम्हें यह सन्देह है कि पाँच भूत हैं या नहीं? तुम वेदपद का अर्थ बराबर नहीं जानते, इसलिए तुम्हें यह सन्देह है। 'स्वप्नोपमं वै सकलं'- स्वप्न के समान सब है। इस वेदपद से तुम यह जानते हो कि पाँच भूत हैं या नहीं? पर यह पाठ जो है, सो अनित्यता बताने वाला है। भूत की नास्ति करने वाला नहीं है। तथा पृथ्वीदेवता, आपो देवता इत्यादिक वेदपद जो हैं, वे सब भूत की सत्ता भिन्न भिन्न कहते हैं। इसलिए पाँच भूत हैं और वे प्रत्यक्ष दीखते हैं। यह सुन कर संशयरहित हो कर अव्यक्त ने भी दीक्षा ली। .. 5. श्री सुधर्म गणधर ___ पाँचवें सुधर्म भी आये। भगवान ने कहा कि हे सुधर्म ! इस भव में जो जैसा होता है, वह परभव में भी वैसा ही होता है याने पुरुष मर कर पुरुष ही होता है और स्त्री मर कर परभव में स्त्री ही होती है, ऐसा तुम्हें सन्देह है। 'पुरुषो वै पुरुषत्वमश्नुते पशुः पशुत्वं' - इसका अर्थ तुम ऐसा करते हो कि पुरुष मर कर पुरुष होता है और पशु मर कर पशु होता है। यह अर्थ तुम 'नित्य' जानते हो, पर यह 'नित्य' नहीं है। यह वेदपद किसी एक जीव के आश्रय से है। यदि यह पद नित्य हो, तो वेद में लिखा है कि 'शृगालो वै जायते यः स पुरुषो दह्यते'- जो पुरुष जलता है, वह पुरुष शृगाल-सियार होता है याने जो पुरुष जलता है, वह पुरुष मर कर सियार होता है। इसमें वह पुरुष सियार होता है, ऐसा कहा। इसलिए पुरुष मर कर पुरुष ही होता है, ऐसा संदेह नहीं रखना। पुरुष मर कर सियार भी होता है। यह सब सुन कर संशय दूर कर सुधर्म ने भी दीक्षा ली। 6. श्री मंडित गणधर ___छठे मंडितजी भी आये। उनसे प्रभु ने कहा कि बंध-मोक्ष है या नहीं? यह तुम्हें संशय है। वेदपद का अर्थ तुम्हें मालूम नहीं है। वह वेदपद इस प्रकार है- स एष विगुणो विभुर्न बध्यते, संसरति वा न मुच्यते। अर्थात् वह सत्वगुणादि रहित (विगुण) सर्वव्यापी (विभुः) जीव कर्म से बद्ध नहीं होता (न बध्यते) अथवा संसरण नहीं
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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