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________________ (244) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध के लिए महासागर में नाव याने जहाज को तोड़ने की इच्छा करेगा? अर्थात् कोई भी जहाज नहीं तोड़ेगा, पर जो मूर्ख होगा, वह अवश्य तोड़ डालेगा। वैसे ही यदि मैं इनके साथ वाद न करूँ, तो मेरा यशरूप मलयागिरि चन्दन जल कर भस्म हो जाता है और मेरी यशरूपी नौका महासमुद्र में तोड़ डालने जैसा होता है। इसलिए ऐसा मूर्ख मुझे नहीं होना चाहिये। अथवा पूर्वोक्त श्लोकों का अर्थ इस प्रकार मिलाना भगवान के अतिशय देख कर इन्द्रभूति ने सोचा कि ये कोई महापुरुष हैं, इसलिए इनके साथ वाद कर के मैं अवश्य हार जाऊँगा। इससे इनके सम्मुख आ कर मैंने एक खीले के लिए मेरा यशरूपी प्रासाद तोड़ने की मुर्खता की है तथा एक तंतु के लिए हार तोड़ डालने की इच्छा की है। यह तो मैंने एक ठीकरे के लिए कामकुंभ फोड़ डालने जैसा किया, राख के लिए चन्दन जलाने जैसा किया तथा लोहे के एक टुकड़े के लिए महासमुद्र में मेरे सम्पादन किये हुए यशरूपी जहाज को तोड़ डालने जैसा किया। इस प्रकार विचार कर वे प्रभु का वचनातिशय देखने लगे। सारङ्गी सिंहशावं स्पृशति सुतधिया, नन्दिनी व्याघ्रपोतं; मार्जारी हंसबालं प्रणयपरिवशात्, केकिकान्ता भुजङ्गम्। वैराण्याजन्मजातान्यपि गलितमदा, जन्तवोऽन्ये त्यजन्ति; श्रुत्वा साम्यैकरूढं प्रशमितकलुशं, योगिनं क्षीणमोहम्।।१।। समपरिणामपूर्वक एकान्त में रहने से प्रकर्षता से जिनके कलुष याने पाप उपशमित हुए हैं तथा क्षीण हुआ है मोहजिनका ऐसे योगियों को सुन कर याने कि उपशमसहित, पापरहित और मोहरहित ऐसे जो योगी मुनिराज हैं, उन्हें सुन कर अर्थात् ऐसे मुनियों के वचन सुन कर, जिन्हें जन्म से ही आपस में एक-दूसरे के साथ बैर है, ऐसे तिर्यंच जीव भी समवसरण में मदरहित होते हुए अपने अपने बैर को छोड़ देते हैं। याने कि जिनके वचन ऐसे हैं कि उन्हें सुनने से जीव आजन्म के बैर भी भूल जाते हैं। यह बैर किन किन में है? सो कहते हैं
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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