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________________ (208) . श्री कल्पसूत्र-बालावबोध अनेक शिष्यों के साथ ठहरे हुए थे। उन साधुओं को देख कर गोशालक ने पूछा कि तुम लोग कौन हो? वे बोले कि हम साधु हैं। तब गोशालक बोला कि कहाँ तुम और कहाँ मेरे धर्माचार्य ! इस पर वे साधु बोले कि जैसा तू है, वैसा ही तेरा गुरु भी होगा। तब गोशालक क्रोधित हो कर बोला कि मेरे धर्माचार्य के तप-तेज के प्रभाव से तुम्हारा आश्रम जल कर भस्म हो जाये। इस पर वे साधु बोले कि इससे हम कोई डरने वाले नहीं हैं। आश्रम नहीं जला। फिर गोशालक ने जा कर प्रभु से कहा कि हे स्वामिन् ! जैसा पहले आपका प्रभाव था, वैसा अब नहीं रहा। लगता है, तप-तेज घट गया है। तब सिद्धार्थ बोला कि अरे ! उन साधुओं को शाप नहीं लगता। वे नहीं जलेंगे। फिर वे पार्श्वनाथ के शिष्य मुनिचन्द्रसूरि जिनकल्प की तुलना करते हुए काउस्सग्ग में खड़े थे, तब एक कुम्हार ने चोर समझ कर उन्हें मारापीटा। उस समय मुनिचन्द्रसूरिजी को अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ और वे मर कर देवलोक में गये। देवों ने उनकी महिमा की। इस कारण से वहाँ उजाला हुआ। यह देख कर गोशालक बोला कि देखो ! साधुओं का आश्रम जल रहा है। मेरे गुरु सच्चे हैं। तब सिद्धार्थ व्यन्तर बोला कि अरे कुपात्र ! यह तो मुनिचन्द्रजी देवलोक गये हैं, उसका महोत्सव हो रहा है। यह सुन कर गोशालक निराश हो गया। इसके बाद प्रभु चोरानगरी गए। वहाँ गोशालक गाँव में हेरते हुए घूमने लगा। तब वहाँ के लोगों ने उसे जासूस समझ कर कुएँ जितने गहरे खड्डे में डाला। फिर वे भगवान को भी खड्डे में डालने लगे। इतने में उत्पल नामक विप्र की बहन सोमजयन्ती जो चारित्र का त्याग कर संन्यासिनी बनी थी, वह वहाँ आ पहुँची। उसने भगवान को पहचान कर छुड़ाया। लोगों ने गोशालक को भी छोड़ दिया। फिर वहाँ से विहार कर चौथा चौमासा भगवान ने पृष्ठचंपा नगरी में किया। वहाँ वे चौमासी तप कर के रहे। वहाँ चौमासा पूर्ण कर बाहर जा कर पारणा किया।।४।। .. . वहाँ से विहार कर भगवान कयंगल सन्निवेश गये। वहाँ माघ मास में
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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