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________________ (206) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध यहाँ शरवण ग्रामनिवासी मंखलीपुत्र सुभद्रा का अंगज गोशालक घूमते घूमते भगवान के पास आया। बहुल द्विज की गोशाला में वह जन्मा था, इसलिए उसका नाम गोशालक रखा गया था। भगवान ने वहाँ कुल चार मासखमण और चार पारणे किये। पहले मासखमण के पारणे में विजय सेठ ने क्षीरादिक विपुल भोजन से पारणा कराया। वहाँ देवों ने पंच दिव्य प्रकट किये। फिर सरस क्षीरादिक, कूरादिक और मोदकादिक का आहार देख कर गोशालक ने सोचा कि इन्हें घर घर वहोराते हैं, इसलिए मैं भी भिक्षा के लिए अलग घूमूंगा, तो मेरी भी मान्यता बढ़ेगी। तब भगवान को जिसने वहोराया था, उसके पड़ोसी के यहाँ गोशालक वहोरने गया। यह देख कर पड़ोसी खुश हुआ कि मेरे घर भगवान पधारे हैं। वह उठ कर बैठ गया। फिर वन्दन कर कहा कि हे महाराज! मेरे घर पारणा कीजिये। तब गोशालक ने दो हाथ पसारे। उस गृहस्थ ने गरम गरम रसोई परोसी और ऊँचा सिर कर के देखने लगा कि मेरे घर सुवर्णमुद्राएँ बरसें। इतने में एक कौआ आ कर उसके सिर पर बैठा। उस समय छत पर से एक स्त्री ने गोशालक के हाथ पर अंगारे डाले। यह देख कर सेठ ने सोचा कि पड़ोसी के घर तो सुवर्णमुद्राएँ बरसीं और मेरे घर तो कोयले बरसे। गोशालक के हाथ जल गये। वह वहाँ से उदास हो कर निकल गया। भगवान को दूसरा पारणा नन्द ने पक्वान्नादिक से कराया। तीसरे मासखमण में तीसरा पारणा सुनन्द ने परमान्नादिक से कराया। वहाँ भी सर्वत्र पंचदिव्य प्रकट हुए। यह देख कर गोशालक ने विचार किया कि इनके पास कोई सारविद्या है, जिससे ये घर घर सोना बरसाते हैं। फिर वह भगवान से बोला कि हे भगवन् ! मैं आपका शिष्य हूँ। यह कह कर वह भगवान के साथ घूमने लगा। भगवान ने वहाँ से निकल कर चौथा पारणा कोल्लाग सन्निवेश में बहुल नामक ब्राह्मण के घर केवल खीर के भोजन से किया। वहाँ पाँच दिव्य प्रकट हुए। यह दूसरा चौमासा जानना।।२।। गोशालक को भगवान दिखाई नहीं दिये। उसने नगर में चारों ओर
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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