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________________ (192) ___ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध बैठ कर धर्मोपदेश देंगे, धर्म की प्ररूपणा करेंगे। सूर्यमंडल देखा, इससे आप केवलज्ञान प्राप्त करेंगे। मानुषोत्तर पर्वत को अपनी आँतों से वेष्टित किया देखा, इससे जगत में आपकी यशःकीर्ति चारों ओर फैलेगी तथा प्रतापवन्त देवनिकाय से आप सेवनीय होंगे। अपनी भुजाओं के बल से समुद्र पार किया, इससे आप संसाररूप समुद्र से पार हो जायेंगे। हे. भगवन् ! आपने दो फूलमालाएँ देखीं, इसका अर्थ मैं नहीं जानता। इसलिए आप ही कृपा कर बताइये।। उस समय भगवान तो मौनी थे, इसलिए छद्मस्थावस्था में नहीं बोले। इस कारण से सिद्धार्थ व्यन्तर ने भगवान के मुख में प्रवेश कर कहा कि दो फूलमालाएँ देखीं, इसलिए श्रावक का और यति का इस प्रकार दो प्रकार के धर्म की मैं प्ररूपणा करूँगा। इस तरह स्वप्नफल सुन कर सब लोग भगवान को वन्दन कर के अपने अपने स्थान पर गये। अब भगवान ने भी पन्द्रह दिन न्यून प्रथम चातुर्मास निर्विघ्नरूप से पूर्ण कर के मेरु के समान धैर्य धारण करते हुए, समतारूप रस में रमते हुए चातुर्मासिक पारणा कर के वहाँ से विहार किया। यह प्रथम चातुर्मास हुआ।।१।। अहच्छन्दक निमित्तज्ञ का वृत्तान्त __वहाँ से विहार कर भगवान मोराक सन्निवेश के उद्यान में जा कर काउस्सग्ग में रहे। वहाँ भगवान की महिमा बढ़ाने के लिए सिद्धार्थ व्यन्तर उनके शरीर में संक्रमित हो कर लोगों को भूत, भविष्यत् और वर्तमान से संबंधित निमित्त बताने लगा। इससे वहाँ के लोग भगवान की सेवा करने लगे। उस गाँव में अहच्छंदक नामक एक निमित्तज्ञ रहता था। . ___ वह भगवान से ईर्ष्या करने लगा, क्योंकि लोग उससे कहने लगे कि त देवार्य के जैसा निमित्त नहीं जानता। मैंने कल खेत में साँप देखा था, सो उसने कह बताया तथा मैं जीम कर गया था, वह भी उसने बता दिया। तब अहच्छन्दक क्रोध कर के भगवान का निमित्त असत्य करने के लिए हाथ में तृण ले कर भगवान के पास गया और उनसे पूछा कि हे आर्य ! यह तृण टूटेगा या नहीं? यह सुन कर सिद्धार्थ ने कहा कि नहीं टूटेगा। तब वह तोड़ने लगा। इतने में इन्द्र महाराज ने अवधिज्ञान से देख
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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