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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध __ (185) आडंबरसहित, सर्व बलसहित, सर्व सेनासहित, सर्व वाहनसहित, सर्व समुदायसहित, सर्व आदरसहित, सर्व सम्पदासहित, सर्व उत्सवसहित, देखने की मन में इच्छा हो, ऐसे सर्व मिलापसहित, सर्व लक्ष्मीसहित, संभ्रमसहित, सर्व नगरलोकसहित, सर्व तालेवर (मालदार) सहित, सर्व अन्तःपुर सहित, सर्व पुष्प-गंधमाला तथा अलंकारों से सुशोभित, सर्व वाद्यों के घोषसहित, महाऋद्धि-द्युति-बल-वाहन समुदाय सहित, बड़े बड़े और शुभ बाजे समकाल में बजते हुए, शंख, ढोल, पटह, झालर, खरमुखी, हुडुक्क, देवदुंदुभी प्रमुख बाजों के प्रतिशब्द सहित क्षत्रियकुंडपुर नगर के मध्य में हो कर भगवान निकले। . वहाँ से निकल कर ज्ञातखंडवन नामक उद्यान में एक सुन्दर उत्तम अशोकवृक्ष के पास पहुंचे। उस वृक्ष के नीचे पालकी रखवायी। फिर पालकी से उतरे। उतर कर अपने हाथ से माला-प्रमुख सब अलंकार उतार दिये। वे अलंकार उनके कुल की बुजुर्ग हंसलक्षणा स्त्री ने अपने वस्त्र में लिये। फिर भगवान ने अपने हाथ से पंचमुष्टि लोच किया। वे केश इन्द्र महाराज ने स्वयं ले जा कर क्षीरसमुद्र में विसर्जित किये। लोच के बाद चउविहार छ? याने बेले की तपस्या करते हुए उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर शक्रेन्द्र द्वारा दिया गया एक मात्र देवदूष्य वस्त्र ले कर अकेले राग-द्वेष रहित तथा साधु-संगरहित स्थिति में द्रव्य से और भाव से मुंडित हो कर गार्हस्थ्य का त्याग कर के भगवान ने अनगारत्व (साधुत्व) को अंगीकार किया। ___ जिस समय भगवान ने सामायिक का उच्चारण किया, उस समय शक्रेन्द्र ने सर्व कोलाहल वाद्य प्रमुख बन्द करवाये। फिर भगवान ने 'नमो सिद्धाणं' कह कर 'करेमि सामाइयं' यावत् 'तस्स पडिक्कमामि' इत्यादि पाठ कहा। यहाँ अन्य गुरु करने का अभाव है। स्वयं स्वयंबुद्ध हैं, इसलिए 'भन्ते' पद नहीं कहा। तीर्थंकर का ऐसा ही कल्प है। सामायिक उच्चारण करते ही भगवान को चौथा मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न हुआ। फिर इन्द्र तथा देवों ने भगवान को नमस्कार कर नन्दीश्वरद्वीप जा
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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