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________________ (170) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध उपाध्याय को बहुत दान दिया। भगवान के माता-पिता भी बहुत प्रसन्न हो कर भगवान को हाथी पर बिठा कर उत्सव सहित बाजे-गाजे के साथ धूमधाम से घर ले आये। अथ सार्थ भले प्रकरणम् श्री वीर प्रभु को पाठशाला में बैठा जान कर सौधर्मेन्द्र ने ब्राह्मण के रूप में वहाँ जा कर प्रभु को नमस्कार कर सब लोगों को चमत्कृत करने के लिए प्रथम भले के अर्थ पूछे। भगवान ने अर्थ इस प्रकार बताये 1. बे लीटी- जीव की दो राशियाँ हैं। उनमें एक सिद्ध के जीव सो निष्कर्मी और दूसरे संसारी जीव सो सकर्मी जानना। 2. भले- हे जीव ! तू सिद्ध के जीवों की राशि में सम्मिलित होने की इच्छा रखना। 3. मींडु- संसाररूप गहरा कुआँ गोलाकार है। उसमें से निकलने के लिए धर्मरूप छिद्र है, इसलिए निकलेगा तो सिद्ध में मिल जायेगा। ___4. बिलाड़ी- जैसे कुएँ में गिरी हुई वस्तु लोहे की बिलाडी (बिलाई) से बाहर निकाली जाती है, वैसे ही संसारी जीव को संसारकूप में से बाहर निकालने वाली एक देशविरति और दूसरी सर्वविरतिरूप दो बिलाड़ी जानना। , ___ अब सिद्ध के जीव कहाँ रहते हैं? सो कहते हैं 5. ओगण चोटीओ माथे पोटीओ- याने चौदह राजलोक के अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक ये तीन भाग हैं। इनमें ऊर्ध्वलोक की चोटी के स्थान पर बारह योजन विस्तार वाली ईषत्प्राग्भारा नामक पृथ्वी है। वहाँ एक योजन के चौबीसवें भाग में तीन सौ तैंतीस धनुष्य बत्तीस अंगुल विस्तार में लोक के मस्तक पर अलोक को स्पर्श करते हुए सिद्ध के जीव रहते हैं। 6. ननो वीटालो- हे जीव! संसार के कामभोगों में मग्न हो कर तू लिप्त हो रहा है, इसलिए तुझे अधोगति याने नीची गति प्राप्त होगी। 7. ममो माउलो- यह संसार जीव का अनादि घर है। उसमें मोह नामक मातुल (मामा) सपरिवार रहता है। 8. ममा हाथ बे लाडुवा- मोह मामा के हाथ में दो लड्ड हैं। वह जीव को काम और भोग रूप दो लड्डु हाथ में दे कर भरमाता है। उसे संसार से निकलने नहीं देता। 9. सेरी राणी चोकड़ी- सिद्धिरूप रानी के मंदिर के बाहर चारं कषायरूप
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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