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________________ (144) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध कटक के देव भद्रासनों पर बैठे। चारों दिशाओं में चौरासी हजार आत्मरक्षक देव भद्रासनों पर बैठे। ऐसी ही सजधज से सब इन्द्र अपने अपने विमान में बैठ कर नन्दीश्वर द्वीप की ओर चले। उनमें से कई देव इन्द्र की आज्ञा पालने के लिए, कई देव मित्रों की प्रेरणा से, कई देव अपनी-अपनी देवियों की प्रेरणा से, कई देव तीर्थंकर की भक्ति के लिए, कई देव कौतुक देखने के लिए तथा कई देव अपूर्व आश्चर्य देखने के लिए उनके साथ चले। वे देव अपने-अपने अलग-अलग वाहन पर सवार हुए। सिंह वाहन पर सवार देव ने हस्तिवाहन पर सवार देव से कहा कि तू तेरा हाथी दूर रख। मेरा सिंह जबरदस्त है। वह तेरे हाथी को मार डालेगा। इसी प्रकार के वचन महिषवाहन पर सवार देव ने अश्ववाहन वाले से, गरुड पर सवार देव ने सर्प पर सवार देव से तथा व्याघ्रवाहन पर सवार देव ने छागवाहन वाले देव से कहे। ऐसा वचन-विवाद करने वाले कोटानकोटि देव सब अपने-अपने वाहन की प्रशंसा करते चले। यद्यपि आकाश बहुत विस्तृत है; तो भी उस समय देवसमुदाय के कारण वह संकीर्ण हो गया। ___मार्ग में कोई देव जब अपने मित्र से आगे बढ़ जाता, तब मित्र कहता कि अरे ! जरा ठहरो तो सही। मैं भी आ रहा हूँ। तब वह देव यह कह कर आगे चला जाता कि भगवान को पहले वन्दन करने का लाभ कौन चूके? इसी तरह जो प्रबल होता, वह आगे बढ़ जाता। कोई कमजोर होता, वह गिरते हुए कहता कि भाई! यह मार्ग तो बहुत संकीर्ण है। तब अन्य कोई कहता कि चुप रहो। पर्व के दिन तो संकीर्ण ही होते हैं। कोई कहता कि अधिक मत बोल। इन्द्र को मालूम हो गया, तो सजा मिलेगी। इस तरह आकाश से नीचे उतरते हुए जब वे देव ज्योतिषी के तारों के पास आये, तो तारों की किरणों से वे चमकने लगे। यहाँ कवि उत्प्रेक्षा करता है कि यद्यपि सब देव निर्जर हैं, तो भी वे जरा सहित (वृद्ध) हो गये। ऐसा लगने लगा कि क्या उनके सिर पर सफेद बाल ऊग आये हैं? उन देवों के सिर पर तारों का विमान देख कर ऐसा लगता था कि मानो चान्दी का घड़ा ही हो। उनके शरीर से
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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