________________ (140) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध त्रिभुवनदीपक श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी का जन्म हुआ। उनकी जन्मकुंडली स्थापना। जैनाचार्य श्रीमद्भट्टारक-विजय राजेन्द्रसूरीश्वर - सङ्कलिते श्री कल्पसूत्र-बालावबोधे चतुर्थं व्याख्यानं समाप्तम्।। पंचम व्याख्यान जिस रात्रि में श्री महावीरस्वामी ने जन्म लिया, उस रात्रि में बहुत देवदेवियाँ स्वर्ग में जाते-आते मानो बहुत आकुल-व्याकुल हो रहे हों वैसा, मालूम नहीं होने जैसा अव्यक्त शब्द (कोलाहल) हुआ। याने कि जब बहुत से लोग एक साथ बोलते हैं, तब आवाज अवश्य होती है, पर मालूम नहीं होता। जिस समय में श्री महावीरस्वामी का जन्म हुआ, उस समय तीनों लोक में उद्योत हुआ तथा सातों नरकों में भी उद्योत हुआ। आकाश में देवदुंदुभी बजी तथा नरक के जीवों को भी क्षण भर के लिए आनन्द हुआ, क्योंकि भगवान के अतिशय से नारकी जीवों को भी मुहूर्त मात्र शाता होती है तथा स्थावर जीवों का भी विशेष छेदन-भेदन नहीं होता, इसलिए उन्हें भी सुख होता है। भगवान के जन्म के समय सारी धरती उल्लासमान हुई। छप्पन्न दिक्कुमारी और सुरेन्द्रकृत जन्मोत्सव भगवान का जन्म होने से छप्पन्न दिक्कुमारिकाओं के आसन चलायमान हुए। तब अवधिज्ञान के उपयोग से भगवान का जन्म हुआ जान कर प्रथम अधोलोक में गजदन्ताकार पर्वत के नीचे निवास करने वाली भोगंकरा, 1. पहली नरक में सूर्यसमान, दूसरी में बादलों से आच्छादित सूर्यसमान, तीसरी में चन्द्रसमान, चौथी में बादलों से ढंके हुए चन्द्रसमान, पाँचवी में ग्रह के समान, छठी में नक्षत्र के समान तथा सातवीं में तारे के समान उद्योत (तेज) होता है। ऐसा भगवान के पाँच्नों कल्याणकों में नरकादि सर्व चौदह राजलोक में उद्योत होता है।