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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (119) बलदेव गर्भ में आने पर बलदेव की माता इन चौदह स्वप्नों में से चार स्वप्न देखती है तथा मांडलिक राजा की माता इन चौदह स्वप्नों में से कोई भी एक स्वप्न देखती है। . ___ अब बयालीस मध्यम स्वप्नों के नाम कहते हैं- गंधर्व, राक्षस, भूत, पिशाच, बुक्कस, महिष, अहि, वानर, कंटकद्रुम, नदी, खजूर, स्मशान, ऊँट, खर, मार्जार, दौःस्थ, संगीत, धीज, भस्म, अस्थि, वमन, तम, कुस्त्री, चर्म, रक्त, अश्म, वामन, कलह, विविक्तदृष्टि, जलशोष, भूकंप, ग्रहयुद्ध, निर्घात, भंग, भूमज्जन, तारापतन, सूर्य-चन्द्र-स्फोट, महावायु, महाताप, विस्फोटक और दुर्वाक्य ये बयालीस अशुभ स्वप्न अशुभ फलदायक जानना। __ अर्हन्, बुद्ध, श्री कृष्ण, ब्रह्मा, स्कन्द, गणेश, लक्ष्मी, गौरी, नृप, हस्ती, गौ, वृषभ, चन्द्र, सूर्य, विमान, गेह, अग्नि, स्वर्ग, समुद्र, सरोवर, सिंह, रत्नराशि, गिरि, ध्वज, पूर्णकलश, पुरीष, मांस, मत्स्ययुगल और कल्पवृक्ष ये तीस उत्तम स्वप्नं शुभ फलदायक जानना। बहत्तर स्वप्नों के ये नाम श्री वर्द्धमानसूरिकृत 'स्वप्न-प्रदीप' ग्रंथ के अनुसार लिखे हैं। स्थिरचित्त, जितेन्द्रिय, सदाचारी और सत्त्वशाली, शान्त मुद्रावान, धर्मरुचि, धर्मानुरागी, धर्म पर श्रद्धावान तथा दयालु पुरुष को जो स्वप्न आता है, वह शुभ या अशुभ फल तुरन्त देता है। रात के प्रथम प्रहर में स्वप्न देखे, तो एक वर्ष में फल मिलता है। इसी प्रकार रात के दूसरे प्रहर में स्वप्न देखे, तो छह महीने में तीसरे प्रहर में स्वप्न देखे, तो तीन महीने में चौथे प्रहर में स्वप्न देखे, तो एक महीने में और अंतिम दो घड़ी रात शेष रहे, तब स्वप्न देखे; तो उसका फल दस दिन में मिलता है। सूर्योदय के समय स्वप्न देखे, तो फल तत्काल मिलता है। यदि बुरा स्वप्न दिखाई दे, तो पुनः सो जाना चाहिये। वह स्वप्न किसी से भी नहीं कहना चाहिये। उत्तम स्वप्न देख कर गुर्वादि के सम्मुख प्रकट करना चाहिये। यदि सुनाने योग्य कोई व्यक्ति न मिले, तो गाय के कान में ही सुनाना चाहिये। शुभ स्वप्न देख कर पुनः सो जाये, तो वह निष्फल होता है। शुभ स्वप्न देख कर
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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