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________________ (86) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध से इन्द्र को भी ऐसा ही विचार स्वाभाविक रूप से आया कि त्रिशलारानी को ही पुत्ररत्न दिलवाऊँ। इसलिए हे भव्यो ! तुम समझ लो कि जो जीव जैसा शुभाशुभ कर्म करेगा, उस जीव को वैसा ही शुभाशुभ फल मिलेगा। यहाँ कदापि कोई अन्यदर्शनी पूछे कि इन भगवान को गर्भ में जो इधर-उधर किया गया; वह तुमने तो देखा नहीं। फिर हम कैसे मान्य करें? तो उन्हें उत्तर देना कि तुम्हारे मत में भी भागवत के दसवें स्कन्ध के दूसरे अध्ययन में बलदेव के गर्भ का परावर्तन लिखा है तथा पुराण में भी पुरुषों के गर्भ उत्पन्न हुआ है और उसे देवता ने निकाला है। इस पर मान्धाता राजा की कथा कहते हैं विशाला नगरी में वनराजा महाबलवान था; पर वह पुत्रहीन था। इसलिए पुत्रप्राप्ति के लिए उसने सोलह सौ स्त्रियों के साथ विवाह किया। फिर भी उसे पुत्र नहीं हुआ। तब वह बहुत चिन्तातुर हुआ। पुराणों में कहा है कि अपुत्रस्य गतिर्नास्ति, स्वर्गो नैव च नैव च।' तस्मात्पुत्रमुखं दृष्ट्वा, स्वर्गं गच्छन्ति मानवाः / / 1 / / पुत्रहीन की गति नहीं होती। वह अवगतिक होता है। इसलिए उस राजा ने किसी के उपदेश से अठासी हजार तापस ऋषियों को आमन्त्रित कर भोजन कराया और तैंतीस करोड़ देवताओं की आराधना की। फिर भी किसी में पुत्र देने की शक्ति न दीखी। तब उसने ऋषियों से कहा कि अरे! तुम सब मात्र पेट भरना ही जानते हो, पर मेरा काम करते नहीं हो। राजा के ऐसे बोल सुन कर एक तापस ने कहा कि हे राजन् ! तुम्हारे पुत्र होने का उपाय मैं जानता हूँ। मैं तुम्हें सोने के कटोरे में पानी मंत्रित कर के देता हूँ। वह पानी तुम्हारी स्त्री को पिलाना। इससे तुम्हारे पुत्र होगा। फिर राजा पानी मंत्रित करा के कटोरा भर कर घर ले आया। इतने में सब रानियों ने पुत्र से संबंधित बात सुन कर पानी की माँग की। हर रानी राजा से कहने लगी कि पानी मुझे दो। इस प्रकार भीतर ही भीतर क्लेश होने लगा। राजा ने विचार किया कि अब मैं किसे पानी हूँ और किसे न दूं ? यह सोच कर
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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