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________________ 279 137. पञ्चेन्द्रिय प्राणियों के विषय में उपदेश....... ..............304 संशयात्मक भाषा का प्रतिषेध 149. भाषा के गुण दोषों को विचार कर करके क्या बोलना चाहिए इस हितकारी भाषा बोलने का उपदेश विषय का वर्णन ............. तथा ऐसा होने के लिए. 138. साधारण बातचीत में मृषावाद सदा संयम में रत रहे इस विषय दोष किस प्रकार लग जाता का उल्लेख.................. 305 है इस विषय का सोदाहरण 150. वाक्य शुद्धि का उत्कृष्ट फल बतलाते स्पष्ट विस्तारपूर्वक वर्णन हुए अध्ययन का उपसंहार ........ 306 तथा उन दोषों से बचने के अष्टमाध्ययन उपायों का वर्णन ............. 280 / 151. अध्ययन के कथन करने की प्रतिज्ञा .. 308 139. व्यापार विषयक भाषा के बोलने 152. जीवों के भेदों का वर्णन ......... 309 का निषेध.................. 295 153. षट् प्रकार के जीवों की रक्षा किस 140. किसी को किसी के सन्देश देने की प्रकार होती है इस विषय का आवश्यकता पड़ने पर क्या वर्णन............ व्यवहार करना चाहिए .......... 296 154. आठ प्रकार के सूक्ष्म जीवों की रक्षा 141. पुनः व्यापार विषयक भाषा का . का वर्णन ................... निषेध .................... 297 155. प्रतिलेखना के विषय का वर्णन .... 319 142. गृहस्थर असंयत) को उठने बैठने 156. भिक्षार्थ गए भिक्षु को गृहस्थ के घर आदि के लिए कहने का निषेध .... 298 किस प्रकार व्यवहार चाहिए ..... 320 143. असाधु को साधु कहने का निषेध 157. गृहस्थ के घर देखी-तथा सुनी सब तथा किस को साधु कहना बातें लोगों में प्रकट न करे ........ चाहिए इस विषय का 158. भिक्षा में आए हुए पदार्थों के विषय वर्णन.................... 2 में साधु को अच्छा या बुरा 144. व्यक्तियों की कलह में अमुक की कुछ नहीं कहना चाहिए .......... 322 विजय हो ऐसा कहने का निषेध.... 300 | 159. साधु भोजन में लालायित न होकर / 145. वर्षा आदि के होने या न होने के किन दोषों को दूर करके शुद्ध विषय में कुछ न कहने का भिक्षा ग्रहण कर सकता है इस विधान.................... विषय का वर्णन.............. 301 322 146. मेघ तथा ऋद्धिमान् मनुष्य आदि 160. साधु को संनिधि नहीं करने का . को देवता न कहे अपितु यथार्थ उपदेश.................... 323 भाषा बोले............. | 161. शुद्ध भिक्षावृत्ति वाला साधु क्रोध 147. परिहास आदि में सावधानुमोदिनी के वशीभूत न हो............. 324 भाषा के बोलने का निषेध | 162. श्रुतेन्द्रिय को निग्रह करने का उपदेश 325 148. वाक्य-शुद्धि के फल को दर्शाते 163. क्षुधा और तृषा आदि दुःखों को . ___ हुए उस भाषा के बोलने का समभाव पूर्वक सहन करने का 301 | हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [विषय-सूची
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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