________________ को शब्द कहते हैं 3, उसी स्थान पर होने वाले यश को श्लोक कहते हैं 4, इन चारों बातों के . लिए तप करना निषिद्ध किया है। उत्थानिका- अब आचार समाधि के विषय में कहते हैं: चउव्विहा खलु आयारसमाहि भवइतंजहा- नो इह लोगट्ठयाए आयारमहिट्ठिजा (1) नो पर लोगट्ठयाए आयारमहिट्ठिज्जा (2) नो कित्ति वन्नसहसिलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठिजा(३)नन्नत्थ आरहंतेहिंहेऊहिंआयारमहिडिजा (4) चउत्थं पयं भवइ। भवइ अइत्थ सिलोगोजिणवयणरए अतिंतिणे, पडिपुन्नायइमाययट्ठिए। आयारसमाहिसंवुडे , भवइ अदंते भावसंधए॥५॥ चतुर्विधः खलु अचारसमाधिर्भवतिः, तद्यथा-नेह लोकार्थमाचारमधितिष्ठेत् (१)न परलोकार्थमाचारमधितिष्ठेत्( २)न कीर्तिवर्णशब्दश्लोकार्थमाचारमधितिष्ठे त् (3) नान्यत्र आर्हतैर्हेतुभिराचारमधितिष्ठेत् (4) चतुर्थं पदं भवति। भवति चात्र श्लोकःजिनवचनरतः अतिन्तिनः, प्रतिपूर्णः आयतमार्थिकः। आचारसमाधिसंवृतः , भवति च दान्तः भावसन्धकः // 5 // पदार्थान्वयः-आयारसमाहि-आचार समाधि खलु-निश्चय से चउ-विहा-चतुर्विध भवइ-होती है तंजहा-जैसे कि इहलोगट्ठयाए-इस लोक के वास्ते आयारं-आचार को नो अहिट्ठिजा-न करे परलोगट्ठयाए-परलोक के वास्ते आयारं-आचार पालन नो अहिट्ठिजा-न करे कित्तिवण्णसहसिलो-गट्टयाए-कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लाघा के वास्ते भी आयारं-आचार का नो अहिट्ठिजा-आराधन न करे तथा आरहंतेहिं हेऊहिं-अर्हत् प्रणीत सैद्धान्तिक हेतुओं के बिना आयारं-आचार का नो अहिट्ठज्जा-अनुष्ठान न करे अर्थात् आहेत हेतुओं को लेकर ही आचार-पालन करे चउत्थं पयं-यह चतुर्थ पद भवइ-होता है अ-तथा इत्थ-इस विषय पर . सिलोगो-एक श्लोक भवइ-है जिणवयणरए-जिन वचनों में रत रहने वाला अतिंतिणे-कटु वचनों पर किसी प्रकार 416] दशवैकालिकसूत्रम [नवमाध्ययनम्