________________ इमानि खलु तानि स्थविरैः भगवद्भिः चत्वारि विनयसमाधिस्थानानि प्रज्ञप्तानि। तद्यथा-विनय समाधिः (1) श्रुतसमाधिः (2) तपः समाधिः (3) आचारसमाधिः (४):विनये श्रुते च तपसि, आचारे नित्यं पण्डिताः। अभिरामयन्ति आत्मानं, ये भवन्ति जितेन्द्रियाः॥१॥ पदार्थान्वयः-गुरु कहते हैं आउसं-हे आयुष्मन् शिष्य मे-मैंने सुअं सुना है तेणं-उस भगवया-भगवान् ने एवं-इस प्रकार अक्खायं-प्रतिपादन किया है इह-इस जिन सिद्धांत में खल-निश्चय से भगवंतेहिं-जानादि से यक्त थेरेहिं-स्थविरों ने चत्तारि-चार प्रकार के विणयसमाहिठाणा-विनय समाधि के स्थान पन्नत्ता-प्रतिपादन किए हैं शिष्य प्रश्न करता है हे पूज्य ! थेरेहि-स्थविर भगवंतेहिं-भगवन्तों ने ते-वे चत्तारि-चार प्रकार के विणयसमाहिठाणा-विनय-समाधिस्थान कयरे-कौन से खलु-निश्चयात्मक रीति से पन्नत्ता-निरुपित किए हैं? गुरुश्री उत्तर देते हैं इमे-ये वक्ष्यमाण खलु-निश्चय से ते-वे थेरेहि-स्थविर भगवंतेहिंभगवंतों ने चत्तारि-चार विणयसमाहिठाणा-विनय समाधि के स्थान पन्नता-प्रतिपादन किए हैंतंजहा-जैसे कि विणयसमाहि-विनय समाधि 1, सुअसमाहि-श्रुतसमाधि 2, तवसमाहि-तप समाधि 3, आयार समाहि-आचार समाधि 4, / - जे-जो जिइंदिया-जितेन्द्रिय साधु विणए-विनय में सुए-श्रुत में तवे-तप में अ-और आयारे-आचारे में निच्च-सदैव अप्पाणं-अपनी आत्मा को अभिरामयंति-रमण करते हैं, वे ही पंडिआ-सच्चे पंडित कहलाते हैं। . मूलार्थ-गुरुश्री कहते हैं, हे आयुष्मन् शिष्य ! मैंने सुना है, उस भगवान् ने इस प्रकार प्रतिपादन किया है, इस जैन धर्म में निश्चय ही स्थविर भगवन्तों ने विनय समाधि के चार स्थान कथन किए हैं: . शिष्य प्रश्न करता है, हे भगवन् ! स्थविर भगवन्तों द्वारा प्रतिपादित वे चार प्रकार के विनय समाधि के स्थान कौन से हैं, कृपया बतलाइए-. गुरुश्री उत्तर देते हैं, हे वत्स ! स्थविर भगवन्तों द्वारा प्रतिपादित वे चार प्रकार के विनय-समाधिस्थान ये वक्ष्यमाण हैं; यथा-१ विनय-समाधि, 2 श्रुत-समाधि, 3 तप:समाधि और 4 आचार समाधि। ___ जो जितेन्द्रिय मुनि विनय-समाधि, श्रुत-समाधि, तप समाधि और आचारसमाधि में अपनी आत्मा को 'सर्वतोभावने' संनिविष्ट करते हैं; वे ही परमार्थतः पण्डित होते हैं। टीका-इस चतुर्थ उद्देश का प्रारम्भ, गुरु-शिष्य के प्रश्नोत्तर द्वारा किया गया है। सो नवमाध्ययनम्] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [409