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________________ बड़े मूल्य वाली है, तथा यह वस्तु अउलं-अतुल है (अनुपम है) नत्थि एरिसं-इस के समान अन्य कोई वस्तु है ही नहीं, यह वस्तु अविक्कग्रं- असंस्कृत है (बेचने योग्य नहीं है) तथा यह वस्तु अवत्तव्वंअवक्तव्य है च-और यह वस्तु अचिअत्तं-अप्रीति करने वाली है एवं-इस प्रकार साधु नो वए-नहीं कहे। ___ मूलार्थ- यह वस्तु सर्वोत्कृष्ट है, यह बहुत अधिक मूल्य वाली है, यह अनुपम (अनूठी) है, इस के तुल्य दूसरी कोई वस्तु नहीं है, यह बेचने योग्य नहीं है, यह अमितगुणात्मक है, अवक्तव्य है, यह वस्तु घृणाकारक (गन्दी) है और यह बहुत ही मनोहर है इत्यादि व्यापार विषयक भाषण साधु को कभी नहीं करना चाहिए। टीका- ग्राम वा नगरादि में विचरता हुआ साधु, किसी के प्रश्न कर लेने पर या स्वयं ही निम्न प्रकार से व्यवहार विषय में भाषण न करे यथा-"इन सब पदार्थों में अमुक पदार्थ सब से उत्कृष्ट है, अतः यह शीघ्रतया खरीदने योग्य है अथवा इस पदार्थ के समान और कोई पदार्थ कहीं नहीं है, यह असंस्कृत पदार्थ सब जगह सुलभता से मिल सकता है और यह विक्री में आने लायक नहीं है। इस पदार्थ के गुण इतने हैं कि जिह्वा से वर्णन नहीं किए जा सकते, अतः यह पदार्थ अवक्तव्य है एवं यह पदार्थ अप्रीति उत्पन्न करने वाला है और यह प्रीति करने वाला है।" उपर्युक्त भाषा के न बोलने का कारण यह है कि, इस भाषा से अधिकरण और अन्तराय का दोष लगता है। साधु की कही हुई बात को सुनकर यदि कोई गृहस्थ व्यापार सम्बन्धी नाना प्रकार की क्रियाओं में लग जाय, तो फिर बहुत से अनर्थों के उत्पन्न होने की संभावना है। उत्थानिका- अब सूत्रकार, 'साधु को किसी का निश्चयात्मक संदेश कहना उचित नहीं है' यह कहते हैं : सव्व मेअं वइस्सामि, सव्वमेअंत्ति नोवए। . अणुवीइ सव्वं सव्वत्थ, एवं भासिज्ज पन्नवं॥४४॥ सर्वमेतद् वदिष्यामि, सर्वमेतदिति नो वदेत्। अनुचिन्त्य सर्वं सर्वत्र, एवं भाषेत प्रज्ञावान्॥४४॥ पदार्थान्वयः- सव्वमेनं वइस्सामि- ये तुम्हारी सब बातें मैं उससे अवश्य कह दूंगा तथा सव्वमेअंति- ये मेरी सब बातें तुम उससे कह देना इस प्रकार कभी नोवए-नहीं बोले; किन्तु पन्नवंप्रज्ञावान् साधु सव्वत्थ-सभी स्थानों पर सव्वं-सब बातों को अणुवीइ-पूर्वापर रूप से विचार कर एवंही भासिज्ज-भाषण करे। मूलार्थ- आप निश्चिंत रहें, ये आपकी सब बातें मैं उसको ठीक ठीक कह दूंगा और मेरी कही हुई ये सब बातें, तुम उसको इसी तरह अवश्यमेव कह देना, इस प्रकार विचार निपुण साधु को कभी नहीं बोलना चाहिए। जब बोलना हो तब सभी स्थानों पर सब बातों को एक एक करके विचार की कसौटी पर जाँच करके बोलना चाहि ___टीका- इस गाथा में इस बात का प्रकाश किया गया है कि, परस्पर वार्ता किस प्रकार करनी चाहिए। जैसे किसी ने साधु से कहा कि मेरी अमुक बात अमुक व्यक्ति से कह देना, तब साधु उत्तर 296] हिन्दीभाषाटीकासहितम् सप्तमाध्ययनम् -
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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