________________ टीका- इस गाथा में इस बात का प्रकाश किया गया है कि, जो वचन सावध हैं अर्थात् पापकर्म की अनुमोदना करने वाले हैं, वे साधु को कदापि नहीं बोलने चाहिएँ। यथा-"अच्छा हुआ"-यह सभा स्थान आदि बना लिया; ये सहस्रपाक आदि पदार्थ पकाए गए; ये वन बहुत भयंकर थे काट दिए गए; इस कृपण का चिर संचित धन चोर चुरा ले गए; इस दुष्ट की मृत्यु हो गई, क्योंकि यह नीच हमारी निन्दा किया करता था; इस अहंकार करने वाले व्यक्ति का धन नष्ट हो गया; यह कन्या बहुत अच्छी सुन्दर है और यह विवाह के योग्य है।" उपर्युक्त भाषा में बोलने से अनुमति आदि दोषों का प्रसंग आता है। अतएव दोषज्ञ एवं दोष परिहारक साधु, उक्त भाषाओं का प्रयोग वार्तालाप में कभी भूल कर भी न करे। एक बात यह भी विचारणीय है। वह यह कि, वस्तुतः शब्द बुरे नहीं होते, भाव बुरे होते हैं। भाव की बुराई के फेर में पड़ कर ही बेचारे शब्द बुरे हो जाते हैं। देखिए सूत्रोक्त 'सुकड़ित्ति' आदि शब्द, जो सावध के कारण बुरे मान कर त्याज्य बतलाए गए हैं, वे ही सुन्दर शुद्ध भाव के कारण कितने ग्राह्य हो जाते हैं- जैसे सुकड़ित्ति- अमुक मुनि ने अमुक वृद्ध मुनि की वैयावृत्त्य की, यह बहुत ही अच्छा किया। यह करना ही चाहिए था। सुपक्कित्ति-अच्छा हुआ, उस मुनि ने अपने ब्रह्मचर्य के व्रत को परिपक्व कर लिया। इस व्रत को जितना पकाया जाए, उतना ही अधिक * अच्छा होता है। सुच्छिन्ने-बहुत उत्तम है कि अमुक मुनि ने दुःखकारी स्रेह बंधन को काट दिया। यह बंधन सभी मोक्षाभिलाषी भव्यों को काट देना चाहिए। इसे काटे बिना मोक्ष असंभव है। सुहड़े-यह अच्छा हुआ अमुक मुनि का उपसर्ग समय उपकरण तो चोर ले गए, पर मुनि अपनी गृहीत प्रतिज्ञा में पूर्णतः दृढ़ रहा। या अमुक मुनि ने उपदेश देकर शिष्य का अज्ञान अपहरण कर लिया। सुमड़े-यह अतीव सुन्दर है अमुक मुनिपण्डित समाधि-मरण से मरा। धन्य ? ऐसा मरण सभी सद्भागी सज्जन प्राप्त करें। समाधि-मरण किसी महाभागी के ही भाग्य में होता है। सुनिट्ठिए-अमुक मुनि ने अप्रमत्तता के बल से भव भ्रमण में कारण भूत अष्टकर्मों का नाश कर दिया। ऐसा नाश सब कोई करें और सब किसी का हो तो उत्तमोत्तम है। सुलटेत्ति-अमुक मुनि की क्रिया अतीव सुन्दर है। ऐसी सुन्दर क्रिया सबको अपनानी (करनी) चाहिए। क्योंकि, इस क्रिया के बल से ही. परम मनोहरा मुक्तिवधू ब्याही जा सकती है। उपर्युक्त भाषा पूर्ण-निरवद्य है। इस भाषा से आत्मा कर्म-मल, मुक्त होकर परम पवित्र हो जाती है। विचार शील मुनियों को इस प्रकार अन्य विषयों पर भी भाषा कल्पना करके शुद्ध-भाषा का समाश्रयण करना चाहिए। उत्थानिका- अब सूत्रकार, उक्त-अनुक्त -अपवाद विधि के विषय में कहते हैं :पयत्त पक्कत्ति व पक्कमालवे, पयत्तछिन्नति व छिन्नमालवे। पयत्तलट्ठित्ति व कम्महेउअं, पहारगाढत्ति व गाढमालवे॥४२॥ 294] हिन्दीभाषाटीकासहितम् सप्तमाध्ययनम्