________________ दीने'। 'दशवैकालिक सूत्र' में भी यही समन्वय भावना ओतप्रोत है। इसी सन्दर्भ में सूत्र की एक गाथा द्रष्टव्य हैन जाइमत्ते न य रुवमत्ते, न लाभमत्ते न सुएणमत्ते। मयाणि सब्बाणि विवज्जइत्ता, धम्मज्झाण रए जे स भिक्खू॥ (अध्ययन-10, गाथा-19) दशवकालिक सूत्र का सन्देश यहाँ यह प्रश्न निराधार नहीं होगा कि क्या 'दशवैकालिक सूत्र' की देशनाएँ या उपदेश आधुनिक काल में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं ? इस आगम का मानव जाति के लिए सन्देश क्या है ? काल चाहे कोई हो, मानव सदैव दुख से निवृत्ति और आनन्द की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहा है। यह निश्चित है कि सांसारिक एषणाएँ आनन्द का कारण नहीं हो सकतीं। उक्त आगम केवल आधुनिक काल के लिए ही उपयोगी नहीं अपितु भविष्य के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। भगवान् की वाणी में इहलोक तथा परलोक दोनों में कल्याण की गारण्टी ली गई है। आधुनिक जीवन की कुण्ठाओं, प्रतिस्पर्धाओं तथा वैमनस्य भरे जीवन को भौतिकवाद की ज्वाला से शान्त नहीं किया जा सकता परन्तु भौतिकवाद के दुष्परिणामों को समझने की आवश्यकता है। यही 'दशवैकालिक सूत्र' का सन्देश है। यह सन्देश केवल श्रमणों के लिए ही नहीं है अपितु सभी उन प्राणियों के लिए है जो जीवन की वास्तविकता को जानकर सन्मार्ग पर चलना चाहते हैं। इसलिए यहाँ यह कहना ही उचित प्रतीत होता है कि संतुलित और संयमित ' जीवन-यापन करने की प्रेरणा ही इसका सन्देश है जो वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों के लिए ग्राह्य है। 'दशवैकालिक सूत्र' का अनुवाद आचार्य सम्राट् पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज ने सन् 1946 में किया था। इस आगम के अनुवाद में उनकी विद्वत्ता तथा व्यक्तित्व दोनों ही झलकते हैं। अब इस आगम का पुनः प्रकाशन आचार्य सम्राट् डॉ श्री शिव मुनि जी महाराज तथा मुनि रत्न श्री शिरीष मुनि जी के पावन सान्निध्य तथा निर्देशन में हुआ है। इस कार्य में साहित्याचार्य संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् श्री शंकर दत्त शास्त्री का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ है। प्रस्तुत आगम का प्रूफ संशोधन एवं रीडिंग (पठन) करने तथा उसे व्यवस्थित रूप से प्रकाशित कराने में श्री सूरजकांत शर्मा, एम० ए० (हिन्दी व संस्कृत) का अमूल्य योगदान रहा है। उन्होंने इस परिश्रम साध्य कार्य में जितना श्रम किया है, वह प्रंशसनीय है। मुझे आशा है कि प्रस्तुत ग्रन्थ विद्वानों का कण्ठाहार बनेगा और जन साधारण के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। xxviii