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________________ डा० मुलख राज जैन, शिवपुरी, लुधियाना। दशवैकालिक : एक अनुचिन्तन जैनागम साहित्य में भगवान् ऋषभ देव से लेकर भगवान् महावीर तक की वाणी संग्रहीत है। यह वाणी काल की अनेकों परतों को उघाड़ती हुई हमारे पास पहुंची है। न जाने काल के प्रवाह में आगम साहित्य में कितने परिवर्तन आए होंगे परन्तु तीर्थंकरों की जीव-अजीवादि तत्त्वों पर दृष्टि में कभी अन्तर नहीं आता क्योंकि आर्हत वाणी कालजयी होती है और काल सर्वज्ञ-वाणी को धुंधला नहीं कर सकता। तीर्थंकरों की वाणी का चरम उद्देश्य है-अक्षय आनन्द की प्राप्ति। इस आनन्दोपलब्धि के लिए उन्होंने प्राणी मात्र के लिए कुछ सूत्र, कुछ सिद्धांत तथा कुछ देशनाएँ दी हैं जो जैनागमों में आबद्ध की गई हैं। इन जैनागमों में मोक्ष मार्ग के जिज्ञासु श्रमणों का मार्ग प्रशस्त करने वाला चार मूल सूत्रों में 'दशवैकालिक सूत्र' एक प्रमुख और प्राचीन जैनागम है। भारतीय संस्कृति तथा दशवकालिक सूत्र भारतीय संस्कृति की मूल प्रवृत्ति है - स्थूल से सूक्ष्म की ओर गतिशीलता। संसार के बाह्य पदार्थों के संग्रह को स्थूल तत्त्व की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। यह मनुष्य की ऐसी आवश्यकता है जिस से एकांत रुप से विलग होना असम्भव है परन्तु इसे ही जीवन का अंतिम ध्येय नहीं बनाया जा सकता। पाश्चात्य संस्कृति में बाह्य पदार्थों और मांसल उपलब्धियों को ही सर्वस्व माना जाता है परन्तु भारतीय संस्कृति ने ऐसा कदापि स्वीकार नहीं किया। वह बाह्य पदार्थों और मांसल आवश्यकताओं को सर्वस्व न मानकर सूक्ष्म की ओर अग्रसर होने को प्रश्रय देती है। स्थूल से सूक्ष्म की ओर प्रवृत्त होने का अभिप्राय है - भौतिकवाद से अध्यात्मवाद की ओर अथवा लौकिक से अलौकिक की ओर विकास। इन्द्रियों के सुखों से परे आध्यात्मिक आनन्द ही भारतीय संस्कृति का मूल है और यह वही स्रोत है जिसने विश्व को ऐसे समय में प्रकाश दिया जब वह अज्ञानता के अंधकार में डूबा हुआ था। इसी भारतीय संस्कृति रूपी स्रोतस्विनी की एक धारा है जैन दर्शन और उसी धारा का अंश है - 'दशवैकालिक सूत्र'। प्रस्तुत सूत्र में बाह्य पदार्थों की एषणा छोड़कर आंतरिक गुणों के विकास की ओर प्रेरणा दी गई है, यही कारण है कि इस सूत्र को भारतीय संस्कृति की विलक्षण उपलब्धि माना जाता है। दशवकालिक सूत्र श्रमणों की आचार संहिता यद्यपि जैनागमों में इतिहास, दर्शन एवं लोक व्यवहार जैसे विषयों को सार रूप में ग्रहण किया गया है परन्तु 'दशवैकालिक सूत्र' जैन श्रमणों के लिए मोक्ष मार्ग का प्रथम सोपान है। इस के अध्ययन, XXV
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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