________________ तो महाविदेहं और पंचमारक-कालीन भारत के मनुष्यों की शारीरिक अवगाहना में बड़ा भारी अन्तर है। दूसरे वह आर्या कब हुई? किस आचार्य के समय में गई? चूलिका किस भाँति लाई? अर्थात्-पत्र रूप में लाई या कंठस्थ करके लाई। भगवान् ने दशवैकालिक की ही चूलिका क्यों बना कर दी ? क्या महाविदेह में भी यही भाषा बोली जाती है ? क्या वहाँ पर भी ये ही कल्प हैं, जो चूलिका में भारत की अपेक्षा से दिए हैं। इत्यादि प्रश्नों का उत्तर भी इस कहानी से कोई नहीं मिलता। चूलिकाओं के विषय में जो मत ऊपर देकर आए हैं, हमें तो वही सुसंगत जान पड़ता है। शास्त्रोद्धार की आवश्यकता बड़े दुःख की बात है कि वर्तमान सूत्रों के पाठों में बहुत कुछ भेद देखने को मिलता है। किसी प्रति में कुछ पाठ है, तो किसी में कुछ। कोई किसी पाठ को प्रक्षिप्त मानता है, तो कोई किसी को। कोई किसी पाठ को अधिक एवं कंठस्थ कर रहा है, तो कोई किसी को। दशवैकालिक सूत्र के पाठों में भी यही अव्यवस्था अग्रसर हुई है। अतः श्री संघ से मेरी सविनय प्रार्थना है कि श्री संघ के मुख्य-मुख्य धुरंधर विद्वान् विराट् रूप में एकत्र होकर, आधुनिक मुद्रित प्रतियों, लिखित प्रतियों एवं ताड़ पत्र की प्राचीन प्रतियों का परस्पर मिलान करें और फिर सूत्रमाला के नाम से सब आगमों को अतीव शुद्ध पद्धति से प्रकाशित करें, जिससे आगे फिर कोई व्यक्ति किसी पाठ को न्यूनाधिक न कर सके। यदि श्री संघ ने इस ओर ध्यान न दिया तो स्पष्ट है कि, संघ के लिए इस प्रमाद का फल भविष्य में बहुत कुछ हानिकारक होगा। अतएव उक्त कार्य की सफलता के लिए अतिशीघ्र ही आगम-प्रकाशक मंडल किंवा शास्त्रोद्धार सभा आदि किसी सुदृढ़ संस्था की योजना कर देनी चाहिए। अन्तिम निवेदन अब अन्तिम निवेदन यह है कि, वर्तमान में दशवैकालिक सूत्र की बहुत सी मुद्रित प्रतियाँ मिलती हैं, जिनमें संस्कृत, गुर्जर और हिन्दी भाषा टीका वाली सभी हैं। परन्तु ये प्रतियाँ प्रायः पाठ भेदों एवं अशुद्धियों से युक्त होने के कारण सर्वोपयोगी नहीं हैं। उनसे विरले ही धीमान् सज्जन लाभ उठाते हैं। अतएव कतिपय साहित्यप्रेमी सजनों की एवं अपने अन्तर्हदय की प्रेरणा से प्रेरित होकर, मैंने यह दशवैकालिक सूत्र की 'आत्मज्ञान प्रकाशिका' नामक हिन्दी भाषा टीका संस्कृत छाया, अन्वयार्थ, मूलार्थ और स्फुटार्थ (टीका) आदि से विभूषित की है। अतः मैं आशा करता हूँ कि, सूत्रप्रेमी सज्जन इससे लाभ उठाकर पुण्य के भागी बनेंगे और साथ ही मुझे भी कृतार्थ करेंगे। यदि किसी स्थान पर प्रमादवश, अर्थ वा पाठ में कोई अशुद्धि रह गई हो तो कृपया पाठक, गीतार्थों द्वारा शुद्ध करके पढ़ें और सूचित करें, ताकि मैं अपनी उचित भूल को स्वीकार करके सम्यग् ज्ञान की आराधना करूँ। इस कार्य में मुझे आगमोदय समिति, मकसूदाबाद निवासी राय धनपतिसिंह प्रतापसिंह बहादुर एवं जीवराज घेला भाई (अहमदाबाद) आदि मंडल तथा सज्जनों की ओर से मुद्रित प्रतियों से तथा बहुतसी लिखित प्रतियों से सहायता मिली है। प्रस्तुत प्रति का मूलपाठ तो प्रायः आगमोदय समिति की प्रति के आधार पर ही रक्खा है। एतदर्थ सभी प्रशंसाह हैं। अब प्रेमी पाठकों से निवेदन है कि, सूत्र शब्द के अल्पाक्षर महार्थ, महाक्षर अल्पार्थ, महाक्षर xxiii