SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किया। ___ भद्रबाहु स्वामी के पश्चात् स्थूल भद्र संघ के आचार्य बने।स्थूल भद्र, नन्द के प्रधान मन्त्री सकडाल के ज्येष्ठ पुत्र थे। ये आचार्य भद्रबाहु के पास नेपाल में वाचना ग्रहणार्थ गए थे। उनका निर्वाण 311 ई फू पटना में हुआ।दाहस्थान पर इनके शिष्यों ने इनकी स्मृति में एक स्तूप बनवाया था। __ भगवान् महावीर के उपदेशों को साहित्य रूप में सुरक्षित करने के लिए तीन वाचनाएं (धार्मिक गोष्ठियाँ) हुईं। पहली वाचना पाटली पुत्र में भद्रबाहु स्वामी की अध्यक्षता में भगवान् महावीर के निर्वाण से 160 वर्ष उपरांत हुई। दूसरी वाचना मथुरा में आचार्य स्कंदिल की अध्यक्षता में और तीसरी वाचना देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में वल्लभी (सौराष्ट्र) में हुई। इन तीनों वाचनाओं को क्रमशः पाटलीपुत्रीय, माथुरी तथा वल्लभीय नामों से अभिहित किया जाता है। श्रमण संघ की ये वाचनाएँबौद्धों की तीन महासंगीतियों के समान हैं, जो क्रमशः राजगृह, वैशाली और पाटलीपुत्र में हुई थीं। इन तीनों वाचनाओं में जो जिन्हें स्मरण था उसे लिपिबद्ध किया गया। फलस्वरूप समस्त जैनागम साहित्य को 6 भागों में विभक्त किया गया।वे6 भाग हैं :- 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण सूत्र, 6 छेद सूत्र, 4 मूल सूत्र, 2 चूलक सूत्र। __ यहाँ चार मूल सूत्रों में दशवैकालिक सूत्र' ही हमारा विवेच्य विषय है। दशवकालिक सूत्र : 'दशवकालिक सूत्र' प्रभव स्वामी के शिष्य श्रुतकेवली आचार्य शय्यंभव द्वारा प्रणीत है। ऐसा माना जाता है कि जब ये मुनि बने तब इनकी पत्नी गर्भवती थी। बाद में उनके पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम 'मनक' या मनाक रखा गया। बड़ा होने पर मनक अपने पिता आचार्य शय्यंभव के पास मुनि बन गया।आचार्य ने अपने ज्ञान-बल से देखा कि मनक की आयु केवल 6 मास शेष है। उन्होंने पूर्व श्रुत से 'दशवैकालिक' सूत्र का निर्माण किया। इस सूत्र के अध्ययन से मनक मुनि ने 6 मास में ही अभीष्ट ज्ञान प्राप्त कर लिया। इस सूत्र की प्रामाणिकता कल्पसूत्र' की प्रबोधिनी टीका, 'महा निशीथ सूत्र' तथा 'नन्दी सूत्र' के पुष्ट प्रमाणों से सिद्ध होती है। शय्यंभवाचार्य चतुर्दश पूर्वो केपाठी थे। उन्होंने इस सूत्र की रचना पूर्व श्रुतागमों से की है। प्रस्तुत सूत्र के अध्ययनों की कतिपय गाथाएँइस बात का पुष्ट प्रमाण हैं कि ग्रन्थकार ने महावीर वाणी को उक्त आगम में प्रतिपादित कर स्वयं सिद्ध किया है कि इसका आधार आगम ही हैं। One of the most remarkable ancient religious leaders was Bhadara Bahu, the six thera. He was the second most important figure in Jainism. He was contemporary with first Maurya and lived therefore in the fourth century B.C. It fell to him to take the initiative in the migration to the south which was flight from imminent famine. (Vide P. 118: Religions of Ancient India, by Louis Renou. Published by the Athlone Press at the Senate house, London) सुप्रसिद्ध चीनी यात्री श्यूआन-चुआंग ने अपने यात्रा-विवरण में स्थूल भद्र के उपर्युक्त स्मारक का उल्लेख किया है। (खण्डहरों का वैभव, मुनि कांति सागर, 283) vii
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy