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________________ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के द्वितीय अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ कथन किया है। मैंने जैसा भगवान् से सुना था, वैसा तुम्हें सुना दिया है। इस में मेरी अपनी कोई .कल्पना नहीं है। प्रस्तुत अध्ययन में भी प्रथम अध्ययन की तरह सुपात्रदान का महत्त्व वर्णित हुआ है। सुपात्रदान से मानव प्राणी की जीवन नौका संसारसागर से अवश्य पार हो जाती है। यह बात इस अध्ययन की अर्थविचारणा से स्पष्टतया प्रमाणित हो जाती है। इसलिए मुमुक्षु जीवों के लिए उस का अनुसरण कितना आवश्यक है, यह बताने की विशेष आवश्यकता नहीं रहती। ॥द्वितीय अध्याय सम्पूर्ण॥ द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [963
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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