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________________ अह बिइअं अज्झयणं अथ द्वितीय अध्याय अनेकविध साधनसामग्री के उपयोग से सुखप्राप्ति की वाञ्छा करने वाले मानव प्राणियों से भरा हुआ यह संसार सागर के समान है, जिस का किनारा मुक्तनिवास है। संसारसागर को पार कर उस मुक्तनिवास तक पहुंचने के लिए जिस दृढ़ तरणी-नौका की आवश्यकता रहती है, वह नौका सुपात्रदान के नाम से संसार में विख्यात है। अर्थात् संसार- सागर को पार करने के लिए सुदृढ़ नौका के समान सुपात्रदान है और उस पर सवार होने वाला संस्कारी जीव-सुघड़ मानव है। तात्पर्य यह है कि भवसागर से पार होने के लिए मुमुक्षु जीव को सुपात्रदानरूप नौका का आश्रयण करना परम आवश्यक है। बिना इस के आश्रयण किए मुक्तनिवास तक पहुँचना संभव नहीं है। . मानव जीवन का आध्यात्मिक विकास सुपात्रदान पर अधिक निर्भर रहा करता है, पर उस में सद्भाव का प्रवाह पर्याप्त प्रवाहित होना चाहिए। बिना इस के इष्टसिद्धि असंभव है। हर एक कार्य या प्रवृत्ति में, फिर वह धार्मिक हो या सांसारिक, भावना का ही मूल्य है। कार्य 'की सफलता या निष्फलता का आधार एकमात्र उसी पर है। सद्भावनापूर्वक किया गया सुपात्रदान ही महान् फलप्रद होता है तथा जीवनविकास के क्रम में अधिकाधिक सहायता प्रदान करता है। प्रस्तुत सुखविपाकगत द्वितीय अध्याय में राजकुमार भद्रनन्दी के जीवनवृत्तान्त द्वारा सुपात्रदान की महिमा बता कर सूत्रकार ने सुपात्रदान के द्वारा आत्मकल्याण करने की पाठकों को पवित्र प्रेरणा की है। भद्रनन्दी का जीवनवृत्तान्त सूत्रकार के शब्दों में निम्नोक्त है___ मूल-बिइयस्स उक्खेवो। एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभपुरे णगरे।थूभकरंडगं उजाणं। धन्नो जक्खो ।धणावहो राया। सरस्सई देवी। सुमिणदंसणं। कहणा। जम्मं / बालत्तणं। कलाओ य। जोव्वणं। द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [957
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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