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________________ पूर्वोपार्जित पुण्य से सुबाहुकुमार को मानवशरीर की पूर्ण सामग्री प्राप्त हुई है तथा उसे सुरक्षित रखने के साधन भी मिले हैं और वह उस सामग्री का यथेष्ट उपभोग भी कर रहा है। तब इस प्रकार के मानव शरीर में प्रत्यक्षरूप से उपलभ्यमान गुणसंहति से आकर्षित हुआ व्यक्ति यदि उस के मूलकारण की शोध के लिए प्रयत्न करे तो वह समुचित ही कहा जाएगा। गौतम स्वामी भी इसी कारण से सुबाहुकुमार की गुणसंहति के प्रत्यक्षस्वरूप की मौलिकता को जानने के लिए उत्सुक हो कर भगवान् से पूछ रहे हैं कि हे भगवन् ! यह सुबाहुकुमार पूर्वभव में कौन था ? कहां था ? किस रूप में था ? और किस दशा में था ? इत्यादि। ___ -इन्दभूती जाव एवं-यहां पठित जाव-यावत् पद प्रथम श्रुतस्कंधीय प्रथम अध्ययन में टिप्पणी में पढ़े गए-नामं अणगारे गोयमसगोत्तेणं सत्तुस्सेहे-से लेकर-झाणकोट्टोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ-इन पदों का तथा-तए णं से भगवं गोयमे सुबाहुकुमारं पासित्ता जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए' उप्पन्नकोउहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोउहल्ले उट्ठाए उठेइ उठाए उठ्ठित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरेतेणेवे उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ वंदइ नमसइ वन्दित्ता नमंसित्ता णच्चासन्नेणाइदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे २-इन पदों का परिचायक है। तए णं से भयवं गोयमे सुबाहुकुमारं-इत्यादि पदों का अर्थ निम्नोक्त है सुबाहुकुमार को देखने के अनन्तर भगवान् गौतम को उस की ऋद्धि के मूल कारण को जानने की इच्छा हुई और साथ में यह संशय भी उत्पन्न हुआ कि सुबाहुकुमार ने क्या दान दिया था, क्या भोजन खाया था, कौन सा उत्तम आचरण किया था, क्या सुबाहुकुमार ने किसी मुनिराज के चरणों में रह कर धर्म श्रवण किया था या कोई और सुकृत्य किया था, जिस के कारण इन को इस प्रकार की ऋद्धि सम्प्राप्त हो रही है, तथा गौतम स्वामी को यह उत्सुकता भी उत्पन्न हुई कि देखें प्रभु वीर सुबाहुकुमार की गुणसम्पदा का मूल कारण दान बताते हैं या कोई अन्य उत्तम आचरण, अथवा जब प्रभुवीर मेरे संशय का समाधान करते हुए अपने अमृतमय वचन सुनाएंगे तब उन के अमृतमय वचन श्रवण करने से मुझे कितना आनन्द होगा, इन विचारों से गौतम स्वामी के मानस में कौतूहल उत्पन्न हुआ। प्रस्तुत में जो जात, संजात, उत्पन्न तथा समुत्पन्न ये चार पद दिए हैं, इन में प्रथम जात शब्द साधारण तथा संजातशब्द विशेष का, इसी भांति उत्पन्न शब्द भी सामान्य का और समुत्पन्न शब्द विशेष का ज्ञान कराता है। तात्पर्य यह है कि इच्छा हुई, इच्छा बहुत हुई, संशय 866 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय . [द्वितीय श्रुतस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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