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________________ नहीं रखता। यह भेद समय की प्रबलता को आभारी है। समय के आगे सभी को नतमस्तक होना पड़ता है। विपाकसूत्र में वर्णित जीवनवृत्तान्तों से यह भलिभाँति ज्ञात हो जाता है कि कर्म से छूटने पर सभी जीव मुक्त हो जाते हैं, परमात्मा बन जाते हैं / इस से-परमात्मा ईश्वर एक ही है, यह सिद्धान्त प्रामाणिक नहीं ठहरता है। वास्तव में देखा जाए तो जीव और ईश्वर में यही अन्तर है कि जीव की सभी शक्तियां आवरणों से घिरी हुई होती हैं और ईश्वर की सभी शक्तियां विकसित हैं, परन्तु जिस समय जीव अपने सभी आवरणों को हटा देता है, उस समय उस की सभी शक्तियां प्रकट हो जाती हैं। फिर जीव और ईश्वर में विषमता की कोई बात नहीं रहती। इस कर्मजन्य उपाधि से घिरा हुआ आत्मा जीव कहलाता है उस के नष्ट हो जाने पर वह ईश्वर. के नाम से अभिहित होता है। इसलिए ईश्वर एक न हो कर अनेक हैं। सभी आत्मा तात्त्विक दृष्टि से ईश्वर ही हैं। केवल कर्मजन्य उपाधि ही उन के ईश्वरत्व को आच्छादित किए हुए है, उस के दूर होते ही ईश्वर और जीव में कोई अन्तर नहीं रहता। केवल बंन्धन के कारण ही जीव में रूपों की अनेकता है। विपाकश्रुत का यह वर्णन भी जीव को अपना ईश्वरत्व प्रकट करने के लिए बल देता है और मार्ग दिखाता है। समवायाङ्गसूत्र के ५५वें समवाय में जो लिखा है कि-समणे भगवं महावीरे अन्तिमराइयंसि पणपन्नं अज्झयणाई कल्लाणफलविवागाइं पणपन्नं अज्झयणाई पावफलविवागाइं वागरित्ता सिद्धे बुद्धे जाव पहीणे-अर्थात् पावानगरी में महाराज हस्तिपाल की सभा में कार्तिक की अमावस्या की रात्रि में चरमतीर्थङ्कर भगवान् महावीर स्वामी ने 55 ऐसे अध्ययन-जिन में पुण्यकर्म का फल प्रदर्शित किया है और 55 ऐसे अध्ययन जिन में पापकर्म का फल व्यक्त किया गया है, धर्मदेशना के रूप में फ़रमा कर निर्वाण उपलब्ध किया, अथच जन्म-मरण के कारणों का समूलघात किया। इससे प्रतीत होता है कि 55 अध्ययन वाला कल्याणफलविपाक और 55 अध्ययन वाला पापफलविपाक प्रस्तुत विपाकश्रुत से विभिन्न है। क्योंकि इन विपाकों का निर्माण भगवान् ने जीवन की अन्तिम रात्रि में किया है और विपाकश्रुत उसके पूर्व का है। एकादश अङ्गों का अध्ययन भगवान् की उपस्थिति में 1. कल्पसूत्र में जो यह लिखा है कि उत्तराध्ययनसूत्र के 36 अध्ययन भगवान् महावीर स्वामी ने कार्तिक अमावस्या की निर्वाणरात्रि में फरमाए थे। इस पर यह आशंका होती है कि अङ्ग सूत्रों में चतुर्थ अङ्गसूत्र श्री समवायाङ्गसूत्र के 36 वें समवाय में उत्तराध्ययनसूत्र के 36 अध्ययनों का संकलन कैसे हो गया? तात्पर्य यह है कि जब अङ्गसूत्र भगवान् महावीर स्वामी की उपस्थिति में अवस्थित थे और उत्तराध्ययनसूत्र उन्होंने अपने निर्वाणरात्रि में फ़रमाया, कालकृत इतना भेद होने पर भी उत्तराध्ययनसूत्र के अध्ययन अङ्गसूत्र में कैसे संकलित कर लिए गए? इस प्रश्न का समाधान निम्नोक्त है 78 ] श्री विपाक सूत्रम् . [प्राक्कथन
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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