________________ मडम्ब (जो बस्ती भिन्न-भिन्न हो) के नायक, कौटुम्बिक-कुटुम्बों के स्वामी, मन्त्री-वजीर, महामन्त्री प्रधानमन्त्री, ज्योतिषी-ज्योतिष विद्या के जानने वाले, दौवारिक-प्रतिहारी (पहरेदार), अमात्य-राजा की सारसंभाल करने वाला, चेट-दास, पीठमर्द-अत्यन्त निकट रहने वाला सेवक अथच मित्र, नगर-नागरिक लोग, निगम-व्यापारी, श्रेष्ठी-सेठ, सेनापति-सेना का स्वामी, सार्थवाह-यात्री व्यापारियों का मुखिया, दूत-राजा का आदेश पहुंचाने वाला, सन्धिपालराज्य की सीमा का रक्षक-इन सब से सम्परिवृत्त-घिरे हुए चम्पानरेश कूणिक उपस्थानशालासभामंडप में आकर हस्तिरत्न पर सवार हो गए। जिस हाथी पर चम्पानरेश बैठे हुए थे उस के आगे-आगे-१-स्वस्तिक, २श्रीवत्स, ३-नन्दावर्त, ४-वर्धमानक, ५-भद्रासन, ६-कलश-घड़ा,७-मत्स्य,८दर्पण-ये आठ मांगलिक पदार्थ ले जाए जा रहे थे। हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सेना यह चतुरङ्गिणी सेना उन के साथ थी, तथा उन के साथ ऐसे बहुत से पुरुष चल रहे थे जिन के हाथों में लाठियां, भाले, धनुष, चामर, पशुओं को बांधने की रज्जुएं, पुस्तकें, फलकें-ढालें, आसनविशेष, वीणाएं, आभूषण रखने के डिब्बे अथवा ताम्बूल आदि रखने के डिब्बे थे। तथा बहुत से दण्डी-दण्ड धारण करने वाले, मुण्डी-मुण्डन कराए हुए, शिखण्डी-चोटी रखे हुए, जटी-जटाओं वाले, पिच्छी-मयूरपंख लिए हुए, हासकर-उपहास (दुःखद हंसी) करने वाले, डमरकर-लड़ाई-झगड़ा करने वाले, चाटुकर-प्रिय वचन बोलने वाले, वादकर-वाद करने वाले, कन्दर्पकर-कौतूहल करने वाले, दवकर-परिहास (सुखद हंसी) करने वाले, भाण्डचेष्टा करने वाले अर्थात् मसखरे, कीर्तिकर-कीर्ति करने वाले, ये सब लोग कविता आदि पढ़ते हुए, गीतादि गाते हुए, हंसते हुए, नाचते हुए, बोलते हुए और भविष्यसम्बन्धी बातें करते हुए, अथवा राजा आदि का अनिष्ट करने वालों को बुरा भला कहते हुए, राजा आदि की रक्षा करते हुए, उन का अवलोकन-देखभाल करते हुए, "महाराज की जय हो, महाराज की जय हो" इस प्रकार शब्द बोलते हुए यथाक्रम चम्पानरेश कूणिक की सवारी के आगे-आगे चल रहे थे। इस के अतिरिक्त नाना प्रकार की वेशभूषा और शस्त्रादि से सुसज्जित नानाविध हाथी और घोड़े दर्शन-यात्रा की शोभा को चार चांद लगा रहे थे। __वक्षःस्थल पर बहुत से सुन्दर हारों को धारण करने वाले, कुण्डलों से उद्दीप्तप्रकाशमान मुख वाले, सिर पर मुकुट धारण करने वाले, अत्यधिक राजतेज की लक्ष्मी से दीप्यमान अर्थात् चमकते हुए चम्पानरेश कूणिक पूर्णभद्र नामक उद्यान की ओर प्रस्थित हुए। जिन के ऊपर छत्र किया हुआ था तथा दोनों ओर जिन पर चमर दुलाए जा रहे थे एवं चतुरङ्गिणी सेना जिन का मार्गप्रदर्शन कर रही थी। तथा सर्वप्रकार की ऋद्धि से युक्त, समस्त द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [851